जम्मू-कश्मीर में आतंक की नई परछाईं बनकर उभरा ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) दरअसल पाकिस्तान की खुफिया साज़िश और हाइब्रिड वॉरफेयर का हिस्सा है। भारतीय खुफिया एजेंसियों और रक्षा सूत्रों के मुताबिक, TRF का गठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) ने 2019 में पाकिस्तानी सेना और ISI के सहयोग से किया था—ठीक उसी समय जब भारत सरकार ने अनुच्छेद-370 हटाने का ऐतिहासिक फैसला लिया।
आतंकी संगठन TRF: कैसे काम करता है?
- TRF को भारत सरकार ने 5 जनवरी 2023 को आधिकारिक रूप से आतंकी संगठन घोषित किया।
- यह संगठन खासतौर पर अल्पसंख्यकों, सुरक्षा बलों, पर्यटकों और गैर-कश्मीरी नागरिकों को निशाना बना रहा है।
- इसके हमलों में स्पेशल सर्विस ग्रुप (SSG) के पूर्व पाकिस्तानी कमांडो की भागीदारी भी देखी गई है, जिन्हें आतंक फैलाने के लिए भर्ती कर ट्रेनिंग दी जाती है।
नेतृत्व और नेटवर्क
- TRF के संस्थापक मुहम्मद अब्बास शेख और ऑपरेशनल चीफ बासित अहमद डार अब मारे जा चुके हैं।
- इसका कथित सुप्रीम कमांडर शेख सज्जाद गुल अब भी सक्रिय बताया जा रहा है।
- खुफिया सूत्रों का दावा है कि TRF का मुख्यालय मुरीदके से बहावलपुर (पाकिस्तान) स्थानांतरित किया जा सकता है।
लश्कर की छाया में TRF
- TRF का लॉजिस्टिक्स, फाइनेंस और ऑपरेशनल कंट्रोल सीधे लश्कर-ए-तैयबा के ढांचे से संचालित होता है।
- इसका प्रशिक्षण, हथियारों की आपूर्ति और शरणस्थल लश्कर की ही तरह व्यवस्थित हैं।
नाम बदलने की रणनीति: दुनिया को भ्रम में रखने की कोशिश
TRF जैसे नाम रखे जाने का उद्देश्य:
- FATF की निगरानी से बचना
- अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों से छिपना
- स्थानीय युवाओं में सहानुभूति जगाना
- आतंकवाद को एक विदेशी साजिश की बजाय घरेलू विद्रोह के रूप में पेश करना
लेकिन अब यह नकाब उतर चुका है। TRF पूरी तरह से पाकिस्तान प्रायोजित एक आतंकी छद्म संगठान है, जो जम्मू-कश्मीर में अशांति फैलाकर भारत की आंतरिक स्थिरता और संप्रभुता को कमजोर करना चाहता है।
TRF का अस्तित्व इस बात का स्पष्ट संकेत है कि पाकिस्तान अब पारंपरिक युद्ध की बजाय हाइब्रिड रणनीति के ज़रिए भारत के खिलाफ सूचना युद्ध, आतंक, और भ्रम फैला कर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है। भारतीय एजेंसियों की सख्त निगरानी और रणनीतिक जवाबी कार्रवाई से यह मंसूबा भी बेनकाब होता जा रहा है।