तियानजिन/बीजिंग। शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के विदेश मंत्रियों की बैठक में चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने सदस्य देशों के समक्ष पांच सूत्रीय सुझाव पेश किए। उन्होंने “शंघाई भावना” को मजबूत करने, आपसी सम्मान, निष्पक्षता और न्याय के सिद्धांतों को प्राथमिकता देने की अपील की। बैठक में भारत से विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर, रूस से लावारोव, और अन्य सदस्य देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए।
वांग यी के पांच सुझाव:
1. आपसी सम्मान और निष्पक्षता पर ज़ोर:
वांग यी ने कहा कि SCO देशों को साझा सम्मान, न्याय और समानता के सिद्धांतों पर अडिग रहना चाहिए।
2. साझा सुरक्षा जिम्मेदारी:
उन्होंने सुरक्षा की सामूहिक जिम्मेदारी साझा करने का आह्वान किया ताकि संगठन की मजबूती और क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित हो सके।
3. Win-Win सहयोग मॉडल को अपनाना:
चीन ने पारस्परिक लाभ और साझा विकास को आगे बढ़ाने की बात कही और विकास को ‘इंजन’ के रूप में इस्तेमाल करने की जरूरत बताई।
4. अच्छे पड़ोसी बनकर साझा भविष्य बनाना:
वांग ने जोर दिया कि SCO देशों को मैत्रीपूर्ण पड़ोसी भावना अपनानी चाहिए और “साझा सुंदर घर” के विचार को साकार करना चाहिए।
5. निष्पक्षता और न्याय की रक्षा:
उन्होंने कहा कि संगठन को सही रास्ते पर चलते हुए वैश्विक न्याय की रक्षा करनी चाहिए, खासकर ऐसे समय में जब दुनिया में शक्ति संतुलन बदल रहा है।
दुनिया में परिवर्तन और अशांति साथ-साथ
वांग यी ने अपने संबोधन में कहा कि दुनिया आज अधिक बहुध्रुवीय बनती जा रही है, जहां परिवर्तन और अस्थिरता एक साथ बढ़ रही हैं। उन्होंने यह भी कहा कि दुनिया में आर्थिक वैश्वीकरण गहरा हो रहा है, लेकिन साथ ही संरक्षणवाद और क्षेत्रीय संघर्षों में भी वृद्धि हो रही है।
वैश्विक दक्षिण का उभार और SCO की भूमिका
चीनी विदेश मंत्री ने वैश्विक दक्षिण (Global South) के उभार को विशेष रूप से रेखांकित किया और कहा कि आज यह समूह वैश्विक शक्ति संतुलन को प्रभावित कर रहा है।
उन्होंने SCO देशों से आग्रह किया कि वे इतिहास और भविष्य के प्रति जिम्मेदाराना रवैया अपनाएं, संगठन को और मज़बूत करें और आम सहमति के क्षेत्र को बढ़ाएं।
निष्कर्ष: सहयोग, स्थिरता और नया नेतृत्व मॉडल
चीनी विदेश मंत्री वांग यी के यह सुझाव संकेत करते हैं कि चीन SCO को केवल एक क्षेत्रीय समूह नहीं, बल्कि वैश्विक नेतृत्व में भूमिका निभाने वाले मंच के रूप में देखना चाहता है।
इन प्रस्तावों के ज़रिए उन्होंने संवाद, साझेदारी और संतुलन की कूटनीति को बढ़ावा देने का प्रयास किया, साथ ही भारत, रूस और अन्य सदस्य देशों के साथ भविष्य की रणनीतिक दिशा का संकेत भी दिया।