Saturday, July 27, 2024

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Pine Monoculture एकमात्र कारण नहीं पहाड़ो की आग का

मनुष्य का प्रकृति के साथ सबसे सुखद मेल चैत्र और वैशाख मास में होता है ….लेकिन साल दर साल प्रकृति के साथ कुछ ऐसा खिलवाड़ हुआ जिससे पहाड़ों पर बसंत ऋतु में गीत नहीं…आग की हाहाकार सुनाई दे रही है l  आइए जानते हैं कि आखिर ऐसी क्या गलती हो गयी या फिर लगातार हो रही है, जो उत्तराखंड में आग की जद कम होने की बजाय बढती चली जा रहीं है

समस्या केवल उत्तराखंड या भारत की नहीं हैl  World Resource Institute के आंकड़ों के मुताबिक मौजूदा दशक के शुरुआत  के साथ ही यानि 2021 में आग लगने के कारण पृथ्वी पर 9.3 मिलियन हेक्टेयर में मौजूद पेड़ों की हानि हुई, जो कि उस साल पेड़ों की कुल हानि का एक तिहाई से अधिक था। वहीँ 2022 में जंगल की आग के कारण 6.6 मिलियन हेक्टेयर से मौजूद जंगलों में वृक्ष नष्ट हुए। इसके बाद 2023 में कनाडा और हवाई के जंगलों में लगी आग को कौन भूल सकता हैl

थोड़ा और पीछे चलते हैं…साल 1992 में रियो में हुए पृथ्वी सम्मेलन में जंगल में फैलने वाली आग से उत्पन्न होने वाली विभिन्न समस्याओं पर विस्तार से चर्चा की गई थी और इसके 21वें मसौदे के पैरा 11.2 में लिखा गया कि,‘‘भूमि के अनियंत्रित ह्रास और भूमि के दूसरे कामों में बढ़ते उपयोग, मनुष्य की बढ़ती  ज़रूरतों, कृषि के विस्तार और पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वाली प्रबंधन तकनीक से दुनियाभर के वनों के लिये खतरा पैदा हो गया है। जंगल की आग पर नियंत्रण पाने के अपर्याप्त साधन, चोरी-छिपे लकड़ी की कटाई को रोकने के प्रभावी उपाय न किया जाना और व्यापारिक गतिविधियों के लिये लकड़ी की कटाई आदि भी इसके लिये जिम्मेवार है। जानवर चराने, वातावरण में मौजूद प्रदूषण का घातक असर, विभिन्न क्षेत्रों को मिले आर्थिक प्रोत्साहन और अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों के लिये किये गए कुछ उपायों से भी यह संकट बढ़ा है। वनों के ह्रास से भूमि कटाव, जैव विविधता को नुकसान, वन्यजीवों की कमी और जल स्रोतों का ह्रास हुआ है। इससे जीवन की गुणवत्ता और विकास के अवसरों में भी कमी आई है।’’

ये तो स्पष्ट है कि चाहे देश विकसित हो या विकासशील, forest fire के लिए ग्लोबल वार्मिंग के साथ साथ अन्य कई एक सामान कारण हैं l

चलिए अब वापिस रुख करते हैं उत्तराखंड और इस समस्या को यहाँ के मौजूदा परिपेक्ष से समझने की कोशिश करते हैं l आग की इन घटनाओं में करोड़ों रुपए मूल्य की वन संपदा जलकर नष्ट हो गई। अनेक प्रजातियों के नवजात पौधे, दुर्लभ जड़ी-बूटी और वनस्पति आग में नष्ट हो गई। अनगिनत वन्य जीव और पशु-पक्षी जलकर मर गए। किसी  वार्षिक त्योहार की तरह यह क्रम आज भी जारी है।

 

क्या है जंगलों में आग लगने के कारण

आग लगने के सबसे प्रमुख कारणों में चीड़ के जंगलों को एक सुर में दोषी ठहराया जाता है l उत्तराखण्ड का भौगोलिक क्षेत्रफल 53,483 वर्ग किलोमीटर है। इसमें 64.79% यानी 34,651.014 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र है। 24,414.408 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र वन विभाग के नियंत्रण में है। वन विभाग के नियंत्रण वाले वन क्षेत्र में से लगभग 24,260.783 वर्ग किलोमीटर आरक्षित वन क्षेत्र है, शेष 139.653 वर्ग किलोमीटर जंगल वन पंचायतों के नियंत्रण में हैं। वन विभाग के नियंत्रण वाले वनों में से 3,94,383.84 हेक्टेयर में चीड़ के, 3,83,088.12 हेक्टेयर में बाँज के और 6,14,361 हेक्टेयर में मिश्रित जंगल हैं। लगभग 22.17% क्षेत्र वन रिक्त है।

 

चीड़ की पत्तियाँ जिन्हें स्थानीय भाषा में पिरूल कहा जाता है, आग के फैलने का सबसे बड़ा कारण बनती हैं। चीड़ की लकड़ी फर्नीचर बनाने के काम तो आती ही है, साथ ही पहाड़ों में घर बनाने में अधिकतर इसी लकड़ी का इस्तेमाल होता है। लेकिन चीड़ एक ऐसा पेड़ है कि जहाँ उग जाए वहाँ मिट्टी की उर्वरा शक्ति खत्म कर देता है। यह अक्सर सूखी या शुष्क भूमि पर उगता है जिसे पानी की ज़रूरत नहीं होती, बल्कि यह पानी के स्रोतों को खत्म करने का काम करता है तथा मिट्टी की पकड़ को भी कमज़ोर कर देता है। पहाड़ों में जंगल आपस में एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं और हवा के साथ पिरूल होने के कारण आग और भयावह होते हुए कई जंगलों में फैल जाती है। साथ ही चीड़ के पेड़ों में से लीसा निकालने का काम भी गर्मियों के आगमन के साथ ही शुरू हो जाता है और लीसा आग में घी का काम करता हैl अब सवाल ये उठता है कि आग की शुरुआत होती कैसे है l कई कारणों में सबसे प्रमुख है घास के लिए स्थनीय लोग द्वारा लगाई जाने वाली आग, ताकि अगले सीजन में घास अच्छी हो सके lअमूमन लोग अपने खेत खलिहानों को अगली फसल के लिए तैयार करने के लिए उसके आस पास आग लगाते हैं, ये मैदानी इलाकों में पराली जलाने जैसा ही होता है, लेकिन पिरूल इस आग को जंगलों में फैला देता है l इसके अलावा गर्मी बढते ही पत्तों में आपसी घर्षण भी चिंगारी पैदा करते हैं जो आग में तब्दील हो जाती है l इसके अलावा जंगलों के बीच से निकलते बिजली के तार एक और कारण है जो आग की शुरुआत का कारण बनते हैंl

 

तेज़ी से आग फैलने का एक कारण पलायन भी है l सुदूर इलाकों में पलायन के कारण खेती योग्य भूमि बंजर हो रही है, बंजर भूमि भी आग को तेजी से फैलाने में सहायक सिद्ध हो रही है l साथ ही जो लोग गांवों में रह रहे हैं उनके लिए वन अधिनियम के तहत जंगलों से जुड़े कई पाबंदियों के कारण स्थानीय लोगों का जंगलों से जुड़ाव काफी कम हो गया है l

 

High Altitude Plant Physiology Research Centre, Garwhwal University के अनुसार गर्मी, सर्दी या फिर वर्षा पहले के मुकाबले ज्यादा तेजी से आ रही है l जिसकी वजह से पेड़ों से पत्ते तेज़ी से गिर जाते हैं और बढ़ता तापमान आग का कारण बनता है l Research Centre का ये भी कहना है कि आग के कारण पहाड़ों के वायुमंडल में कार्बन की लेयर मोटी हो जाती है और बारिश आने पर आग बुझ भी जाए ये कार्बन glaciers के उपर जमा हो जातें है, जो धीरे धीरे glaciers को खत्म कर रहे हैं l

 

ऐसा नहीं है कि इस समस्या का कोइ समाधान नहीं है l अगर आज कोशिश की जाये तो 10-12 सालों में उस कोशिश का परिणाम निकलेगा l प्रकृति का सबसे बड़ा सत्य है बायो-डाइवर्सिटी और जितना इसको बनाए रखने का प्रयास करेंगे उतना ही जंगलों की आग का समाधान निकलेगा l चीड़ Monoculture को रोक कर मिश्रित वन विकसित करना बहुत ज़रूरी है l इसके अलावा Pine Management पर ध्यान दिया जाना चाहिए, ताकि आग लगने का वार्षिक कार्यक्रम शुरू होने से पहले ही ठंडा पड़ जाए l

 

 

 

 

 

 

 

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