भारत और इंडोनेशिया के बीच रक्षा सहयोग लगातार मजबूत होता दिख रहा है। दोनों देशों के बीच ब्रह्मोस मिसाइल प्रणाली को लेकर चल रही वार्ताएं अब अंतिम चरण में पहुंच गई हैं। इसी कड़ी में भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने नई दिल्ली में आयोजित बैठक के दौरान इंडोनेशिया के रक्षा मंत्री को ब्रह्मोस मिसाइल की प्रतीकात्मक प्रतिकृति भेंट की, जिसे दोनों देशों के सहयोग की दिशा में एक महत्वपूर्ण संकेत माना जा रहा है।
बैठक के दौरान राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति, स्थिरता और सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, और इंडोनेशिया इस साझेदारी का एक मजबूत स्तंभ है। ब्रह्मोस मिसाइल की प्रतिकृति सौंपना न केवल रणनीतिक सहयोग का प्रतीक है, बल्कि यह भविष्य में रक्षा उत्पादन और सैन्य तकनीक साझा करने के नए अवसर भी खोलता है।
इंडोनेशिया लंबे समय से अपनी नौसैनिक क्षमता बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है। ब्रह्मोस मिसाइल, जो सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइलों में विश्व की सबसे उन्नत प्रणालियों में से एक मानी जाती है, इंडोनेशिया की तटीय रक्षा को मजबूत करने में अहम भूमिका निभा सकती है। अनुमान है कि यह डील फाइनल होने के बाद इंडोनेशियाई नौसेना को तटीय सुरक्षा के लिए समुद्र-आधारित ब्रह्मोस बैटरियां प्राप्त होंगी।
राजनाथ सिंह और इंडोनेशियाई प्रतिनिधिमंडल के बीच हुई इस बैठक में रक्षा उद्योग सहयोग, संयुक्त अभ्यास, प्रशिक्षण कार्यक्रम और समुद्री सुरक्षा जैसे मुद्दों पर भी विस्तृत चर्चा हुई। दोनों देशों ने स्वीकार किया कि क्षेत्र में बढ़ते सुरक्षा चुनौतियों के बीच आपसी सहयोग समय की बड़ी जरूरत है।
भारतीय रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि ब्रह्मोस डील न केवल भारत की रक्षा निर्यात क्षमता को बढ़ाएगी, बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के साथ नई रणनीतिक साझेदारियों को भी गति देगी। इसके अलावा यह सौदा ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के तहत भारत के उभरते रक्षा उद्योग को अंतरराष्ट्रीय बाजार में नई पहचान देगा।
इंडोनेशिया की ओर से भी संकेत मिले हैं कि वह इस डील को जल्द से जल्द अंतिम रूप देना चाहता है, ताकि अपनी समुद्री सीमाओं की सुरक्षा को और प्रभावी बनाया जा सके। रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार, सभी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद निकट भविष्य में इस समझौते की आधिकारिक घोषणा की जा सकती है।
भारत–इंडोनेशिया के बीच रक्षा सहयोग का यह बढ़ता स्तर न केवल दोनों देशों के लिए लाभकारी है, बल्कि यह पूरे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में संतुलन और स्थिरता बनाए रखने की दिशा में भी महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।





