अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रभाव से प्रेरित नई नीति के तहत आज से H-1B वीजा आवेदकों की सोशल मीडिया स्क्रीनिंग शुरू हो रही है। यह कदम राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने के नाम पर उठाया गया है, जिसमें फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और अन्य प्लेटफॉर्म्स पर पिछले पांच वर्षों की पोस्ट्स की जांच होगी। ट्रंप समर्थक अधिकारियों का कहना है कि यह नीति अवांछित तत्वों को फिल्टर करने में मदद करेगी, लेकिन भारतीय आईटी पेशेवरों के लिए यह नया खतरा बन गई है।
H-1B वीजा, जो विशेषज्ञ नौकरियों के लिए दिया जाता है, में हर साल करीब 85,000 कोटा होता है, जिसमें 70 प्रतिशत से अधिक आवेदन भारतीय कंपनियों जैसे टीसीएस, इंफोसिस और विप्रो से आते हैं। नई स्क्रीनिंग प्रक्रिया में आवेदक को अपने सभी सोशल मीडिया हैंडल्स की जानकारी देनी होगी, और यूएस सिटीजनशिप एंड इमिग्रेशन सर्विसेज (यूसिसिस) इनकी गहन जांच करेगा। राजनीतिक टिप्पणियां, धार्मिक पोस्ट्स या संवेदनशील मुद्दों पर राय व्यक्त करने वाले आवेदन रिजेक्ट हो सकते हैं।
ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में ही H-1B पर सख्ती बढ़ाई थी, जिसमें वीजा लॉटरी सिस्टम बदला गया और न्यूनतम वेतन मानदंड तय किए गए। अब उनकी 2024 चुनावी वापसी की उम्मीदों के बीच यह नीति फिर सक्रिय हो गई है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि इससे भारतीय आवेदनों में 20-30 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है, क्योंकि कई युवा इंजीनियर अपनी राय खुलकर व्यक्त करते हैं। नास्कॉम ने चिंता जताई है कि इससे अमेरिकी टेक इंडस्ट्री को कुशल श्रमिकों की कमी झेलनी पड़ेगी।
भारतीय सरकार ने इसकी निंदा की है और अमेरिकी अधिकारियों से बातचीत की योजना बनाई है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यह नीति ‘अत्यधिक हस्तक्षेपकारी’ है और अंतरराष्ट्रीय समझौतों का उल्लंघन करती है। आवेदकों को सलाह दी जा रही है कि वे अपनी प्रोफाइल साफ रखें और संवेदनशील पोस्ट्स हटाएं। ट्रंप समर्थकों का तर्क है कि यह अमेरिकी नौकरियों की रक्षा करेगा, लेकिन आलोचक इसे भेदभावपूर्ण बता रहे हैं।
यह बदलाव आज से लागू हो गया है, और पहले ही सैकड़ों आवेदनों पर असर पड़ा है। भारतीय समुदाय में चिंता की लहर है, क्योंकि H-1B उनके अमेरिकी सपनों का प्रमुख द्वार रहा है। आने वाले महीनों में इसका व्यापक प्रभाव दिखेगा।





