देहरादून। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मंगलवार को पृथक उत्तराखंड राज्य आंदोलन के पुरोधा और ‘उत्तराखंड के गांधी’ के रूप में विख्यात स्वर्गीय इंद्रमणि बडोनी की जयंती पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। मुख्यमंत्री आवास पर आयोजित कार्यक्रम में सीएम धामी ने उनके चित्र पर माल्यार्पण किया और राज्य निर्माण में उनके द्वारा दिए गए अतुलनीय योगदान को याद किया।
प्रेरणास्रोत हैं बडोनी के आदर्श
मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर कहा कि इंद्रमणि बडोनी जी के विचार और उनके द्वारा लिए गए संकल्प आज भी प्रदेश सरकार के लिए मार्गदर्शक और प्रेरणास्रोत हैं। उन्होंने कहा कि बडोनी जी ने जिस अहिंसक और लोकतांत्रिक तरीके से राज्य आंदोलन का नेतृत्व किया, वह समूचे देश के लिए मिसाल है।
- सांस्कृतिक पहचान: सीएम ने कहा कि बडोनी जी केवल एक राजनेता नहीं थे, बल्कि वे उत्तराखंड की लोक संस्कृति और पारंपरिक कलाओं (जैसे चौंफला नृत्य) के भी संरक्षक थे।
- जन-सरोकारों से जुड़ाव: उन्होंने जीवनभर पहाड़ की विषम परिस्थितियों और स्थानीय लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए संघर्ष किया।
विकसित उत्तराखंड का संकल्प
श्रद्धांजलि सभा को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने प्रदेशवासियों को राज्य के विकास के प्रति प्रतिबद्ध रहने का आह्वान किया।
- भ्रष्टाचार मुक्त शासन: मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार बडोनी जी के आदर्शों पर चलते हुए भ्रष्टाचार मुक्त और पारदर्शी शासन की दिशा में काम कर रही है।
- गांवों का विकास: उन्होंने जोर दिया कि राज्य की प्रगति तभी संभव है जब हमारे सीमांत गांवों का विकास होगा, जो कि बडोनी जी का भी मुख्य लक्ष्य था।
- युवाओं को संदेश: सीएम ने युवाओं से अपील की कि वे इंद्रमणि बडोनी के जीवन से सादगी, संघर्ष और मातृभूमि के प्रति समर्पण की सीख लें।
जन-जन के नायक: एक संक्षिप्त परिचय
इंद्रमणि बडोनी का जन्म 24 दिसंबर, 1924 को टिहरी जिले के अखोड़ी गांव में हुआ था। उन्हें उनके सादगीपूर्ण जीवन और अहिंसावादी दृष्टिकोण के कारण ‘उत्तराखंड का गांधी’ कहा जाता है।
“स्वर्गीय इंद्रमणि बडोनी जी ने एक ऐसे समृद्ध और स्वाभिमानी उत्तराखंड की कल्पना की थी, जहाँ हर हाथ को काम और हर क्षेत्र को समान न्याय मिले। उनकी जयंती पर हम उनके सपनों के अनुरूप ‘सर्वश्रेष्ठ उत्तराखंड’ बनाने का संकल्प दोहराते हैं।” — पुष्कर सिंह धामी, मुख्यमंत्री
प्रदेश भर में कार्यक्रम
बडोनी जी की जयंती के अवसर पर देहरादून सहित राज्य के विभिन्न जिलों और पैतृक निवास टिहरी में भी कई सांस्कृतिक एवं गोष्ठियों का आयोजन किया गया। इस दिन को राज्य में लोक संस्कृति दिवस के रूप में भी बड़े उत्साह के साथ मनाया गया।





