पाकिस्तान के बारे में कहा जाता है कि वहां सेना और सत्ता एक सिक्के के दो पहलू हैं। यही वजह है कि सेना में सत्ता और सत्ता में सेना की झलक दिख ही जाती है। हालांकि, अब शहबाज सरकार सेना और आईएसआई के दखल को रोकने की तैयारी में लग गई है। यहां के प्रधानमंत्री के राजनीतिक और सार्वजनिक मामलों के सलाहकार राणा सनाउल्ला ने एक तंत्र बनाने का आह्वान किया है ताकि संस्थान एक दूसरे के अधिकार क्षेत्र में दखलंदाजी नहीं कर पाएं। दरअसल, उनका यह बयान न्यायाधीशों द्वारा पत्र लिखे जाने के बाद आया है, जिसमें न्यायिक कार्यों में खुफिया एजेंसियों द्वारा कथित हस्तक्षेप की बात कही गई थी। सनाउल्ला ने एक मीडिया चैनल के शो में कहा, न्यायाधीशों द्वारा एक पत्र लिखना एक तंत्र के विकास के लिए पर्याप्त है ताकि संस्थाएं एक–दूसरे के क्षेत्र में हस्तक्षेप न करें।‘ रिपोर्ट के अनुसार, राणा ने यह टिप्पणी इस्लामाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के उस पत्र के संदर्भ में की जो मार्च में सामने आया था, जिसमें न्यायिक मामलों में खुफिया एजेंसियों के हस्तक्षेप का आरोप लगाया गया था। इस्लामाबाद उच्च न्यायालय (आईएचसी) के न्यायाधीश न्यायमूर्ति मोहसिन अख्तर कियानी, न्यायमूर्ति तारिक महमूद जहांगीरी, न्यायमूर्ति बाबर सत्तार, न्यायमूर्ति सरदार इजाज इशाक खान, न्यायमूर्ति अरबाब मुहम्मद ताहिर और न्यायमूर्ति समन फफत इम्तियाज ने 26 मार्च को सर्वोच्च न्यायिक परिषद को पत्र भेजा था। जिसमें न्यायिक मामलों में खुफिया एजेंसियों के कथित हस्तक्षेप पर एक न्यायिक सम्मेलन बुलाने का आग्रह किया था। पत्र का जवाब देते हुए पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश काजी फैज ईसा ने 28 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के साथ एक बैठक के दौरान कहा था कि मामलों में कार्यपालिका द्वारा हस्तक्षेप और न्यायाधीशों के न्यायिक कामकाज को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। बैठक में मुख्य न्यायाधीश और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ एक जांच आयोग बनाने पर सहमत हुए थे।





