जनजातीय समाज के सदियों से संचित ज्ञान का उपयोग पर्यावरण को बेहतर बनाने में किया जाए। उनकी संतुलित जीवन शैली के आदर्शों से पुन: सीखें और विकास यात्रा में बराबर का भागीदार बनाएं। उपरोक्त बातें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कहीं। उन्होंने वन संपदा के दोहन की ब्रिटिश मानसिकता से मुक्त होने और जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर पाठ्यक्रम में यथोचित संशोधन पर विचार करने को कहा। कहा, विश्व के कई भागों में वन संसाधनों की क्षति बहुत तेजी से हुई है। वनों का विनाश किया जाना एक तरह से मानवता का विनाश करना है। कहा, विकास रथ के दो पहिये होते हैं, परंपरा और आधुनिकता। विशेष प्रकार की आधुनिकता के मूल में प्रकृति का शोषण है। इस प्रक्रिया में पारंपरिक ज्ञान को उपेक्षित किया जाता है, जबकि जनजातीय समाज ने प्रकृति के नियमों को अपने जीवन का आधार बनाया है। उनकी जीवन शैली मुख्यत: प्रकृति पर आधारित है। इस समाज के लोग प्रकृति का संरक्षण भी करते है। वहीं कुछ लोगों ने जनजातीय समुदाय और उनके ज्ञान भंडार को रूढ़िवादी मान लिया है।