बीजिंग/नई दिल्ली: दक्षिण एशिया के दो परमाणु संपन्न पड़ोसियों, भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों पुराने तनाव को कम करने के लिए अब चीन ने भी अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। अमेरिका द्वारा हाल ही में दिए गए बयानों के बाद, अब चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने एक बड़ा बयान देते हुए कहा है कि बीजिंग दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य करने के लिए ‘रचनात्मक भूमिका’ निभाने और मध्यस्थता करने के लिए तैयार है। चीन के इस रुख को क्षेत्रीय राजनीति में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
वांग यी का बयान: ‘स्थिरता ही प्राथमिकता’
चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने एक अंतरराष्ट्रीय प्रेस वार्ता के दौरान कहा कि भारत और पाकिस्तान दोनों ही चीन के महत्वपूर्ण पड़ोसी हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता न केवल इन दोनों देशों के हित में है, बल्कि पूरे क्षेत्र के विकास के लिए अनिवार्य है। वांग यी के अनुसार, चीन दोनों पक्षों के बीच संवाद को बढ़ावा देने और मतभेदों को सुलझाने के लिए एक ‘सेतु’ का कार्य करने को तैयार है, बशर्ते दोनों देश इसके लिए सहमत हों।
अमेरिका के दावे के बाद चीन की एंट्री
यह घटनाक्रम तब और महत्वपूर्ण हो जाता है जब कुछ ही समय पहले अमेरिकी विदेश विभाग ने भी भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कम करने के लिए पर्दे के पीछे से प्रयास करने की बात स्वीकार की थी। जानकारों का मानना है कि अमेरिका के प्रभाव को संतुलित करने के लिए चीन अब खुद को एक ‘शांतिदूत’ के रूप में पेश कर रहा है।
भारत का रुख: ‘तीसरे पक्ष की भूमिका मंजूर नहीं’
हालांकि चीन और अमेरिका मध्यस्थता की पेशकश कर रहे हैं, लेकिन भारत का रुख इस मामले में हमेशा से स्पष्ट और अडिग रहा है। भारत का आधिकारिक रुख यह है कि:
- द्विपक्षीय मुद्दा: कश्मीर सहित पाकिस्तान के साथ सभी विवाद पूरी तरह से द्विपक्षीय (Bilateral) हैं।
- शिमला समझौता: भारत 1972 के ‘शिमला समझौते’ का हवाला देते हुए किसी भी तीसरे पक्ष (Third party) के हस्तक्षेप को शुरू से ही खारिज करता आया है।
- आतंकवाद पर कड़ा रुख: भारत ने बार-बार कहा है कि ‘आतंक और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते’ और पाकिस्तान को पहले अपनी धरती से संचालित होने वाले आतंकवाद को रोकना होगा।
विशेषज्ञों की राय और क्षेत्रीय प्रभाव
भू-राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि चीन का यह प्रस्ताव भारत के लिए थोड़ा पेचीदा हो सकता है, क्योंकि चीन खुद लद्दाख और अरुणाचल सीमा पर भारत के साथ विवादों में उलझा हुआ है। ऐसे में चीन की निष्पक्षता पर सवाल उठना लाजमी है। वहीं पाकिस्तान, जो आर्थिक संकट से जूझ रहा है, अक्सर अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता की मांग करता रहा है ताकि वह कश्मीर मुद्दे को वैश्विक मंच पर उठा सके।




