Tuesday, December 23, 2025

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बांग्लादेश में खूनी खेल: शेख हसीना के विरोधियों की हत्याओं ने बढ़ाई सनसनी, क्या चुनाव टालने के लिए ‘यूनुस गेम’ शुरू?

ढाका/नई दिल्ली: बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद भी हिंसा और अस्थिरता का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है। हाल के दिनों में अवामी लीग के नेताओं और शेख हसीना के समर्थकों के साथ-साथ अब उनके विरोधियों की भी रहस्यमयी तरीके से हत्याएं हो रही हैं। इन घटनाओं ने देश में कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार जानबूझकर ऐसे हालात पैदा कर रही है ताकि देश में चुनाव टाले जा सकें।

तख्तापलट के बाद हिंसा का नया पैटर्न

बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद से ही बदला लेने की नीयत से की जा रही हत्याओं ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को चिंता में डाल दिया है।

  • लक्ष्य पर कौन?: पहले जहाँ केवल अवामी लीग के कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया जा रहा था, वहीं अब कई ऐसे लोग भी मारे जा रहे हैं जो हसीना के कट्टर विरोधी रहे हैं।
  • अराजकता का माहौल: जेलों में बंद कैदियों के भागने और पुलिस थानों पर हमलों के बाद देश में सुरक्षा तंत्र पूरी तरह चरमरा गया है।
  • अदृश्य हत्यारे: इन हत्याओं के पीछे किन ताकतों का हाथ है—कट्टरपंथी संगठन, प्रतिबंधित समूह या कोई तीसरी शक्ति—इस पर अब तक पर्दा पड़ा हुआ है।

चुनाव टालने का ‘यूनुस गेम’ या प्रशासनिक विफलता?

राजनीतिक विशेषज्ञों और विपक्षी दलों के एक धड़े का मानना है कि डॉ. मोहम्मद यूनुस की सरकार ‘सुधारों’ के नाम पर सत्ता में लंबे समय तक बने रहने की रणनीति पर काम कर रही है।

  1. अनिश्चितकालीन देरी: अंतरिम सरकार ने अभी तक चुनाव की कोई निश्चित तारीख घोषित नहीं की है। उनका तर्क है कि पहले व्यवस्था को पूरी तरह से “साफ” करना जरूरी है।
  2. हिंसा का बहाना: आरोप लग रहे हैं कि देश में बढ़ती अस्थिरता को आधार बनाकर यूनुस सरकार चुनाव टालने का तर्क दे सकती है कि “वर्तमान हालात चुनाव के अनुकूल नहीं हैं।”
  3. शक्ति का केंद्रीकरण: प्रशासन में बड़े पैमाने पर फेरबदल और संस्थानों के ‘वि-अवामीकरण’ (Purge) की प्रक्रिया ने संदेह को और पुख्ता किया है।

अस्थिरता के पीछे के संभावित कारक

बांग्लादेश की इस खूनी राजनीति के पीछे कई गहरे समीकरण हो सकते हैं:

  • कट्टरपंथी ताकतों का उदय: हिफाजत-ए-इस्लाम और जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों का बढ़ता प्रभाव सुरक्षा व्यवस्था के लिए चुनौती बन गया है।
  • विदेशी हस्तक्षेप: रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण होने के कारण, बांग्लादेश की अस्थिरता में बाहरी शक्तियों की भूमिका से भी इनकार नहीं किया जा सकता।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

विदेशी मामलों के जानकारों का मानना है कि यदि बांग्लादेश में जल्द ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाल नहीं की गई, तो देश एक लंबी गृहयुद्ध जैसी स्थिति या कट्टरपंथी ताकतों के चंगुल में फंस सकता है।

“डॉ. यूनुस के सामने सबसे बड़ी चुनौती केवल सुधार नहीं, बल्कि जनता का भरोसा जीतना है। यदि हिंसा नहीं थमती, तो अंतरिम सरकार की वैधता पर सवाल उठना अनिवार्य है।” — दक्षिण एशियाई राजनीति विशेषज्ञ

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