नई दिल्ली/देहरादून: उत्तराखंड में वन भूमि पर हुए बड़े पैमाने पर अतिक्रमण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है। अदालत ने राज्य सरकार को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि प्रदेश की 11,900 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि, जो वर्तमान में ‘कैप्चर’ या अधिकृत की गई है, उसे वापस लेने की प्रक्रिया शुरू की जाए। हालांकि, मानवीय पक्ष को देखते हुए कोर्ट ने रिहायशी घरों को लेकर फिलहाल राहत दी है।
सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख और निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने पारिस्थितिक संतुलन और जंगलों के संरक्षण पर चिंता जताते हुए प्रशासन को दो हिस्सों में कार्रवाई करने को कहा है:
- खाली जमीन पर तत्काल कार्रवाई: कोर्ट ने आदेश दिया है कि वन भूमि का वह हिस्सा जिस पर कोई निर्माण नहीं है और जो केवल घेराबंदी या अवैध कब्जे में है, उसे विभाग तुरंत अपने नियंत्रण में ले।
- आवासीय घरों को फिलहाल राहत: जिन क्षेत्रों में लोग दशकों से घर बनाकर रह रहे हैं, उन्हें फिलहाल नहीं उजाड़ा जाएगा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आवासीय निर्माणों को छोड़कर बाकी वन भूमि पर सरकार का कब्जा होना चाहिए।
- अतिक्रमण का रिकॉर्ड: राज्य सरकार को आदेश दिया गया है कि वह वन भूमि पर हुए अतिक्रमण का पूरा ब्योरा और अब तक की गई कार्रवाई की रिपोर्ट अदालत में पेश करे।
उत्तराखंड में वन भूमि की स्थिति: एक नजर में
राज्य के वन विभाग द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, उत्तराखंड के विभिन्न वन प्रभागों में स्थिति गंभीर बनी हुई है।
| क्षेत्र का विवरण | स्थिति |
| कुल अतिक्रमित भूमि | लगभग 11,900 हेक्टेयर से अधिक |
| प्रमुख प्रभावित जिले | नैनीताल, उधमसिंह नगर, देहरादून और हरिद्वार |
| अतिक्रमण के प्रकार | धार्मिक स्थल, खेती योग्य भूमि, और अवैध बस्तियां |
पारिस्थितिकी के लिए खतरा बना अतिक्रमण
अदालत ने सुनवाई के दौरान इस बात पर जोर दिया कि उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्य के लिए जंगलों का सुरक्षित होना अनिवार्य है। वन भूमि पर कब्जे के कारण वन्यजीवों के गलियारे (corridors) प्रभावित हो रहे हैं, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं बढ़ रही हैं।
“वन भूमि का संरक्षण केवल कानूनी जिम्मेदारी नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के प्रति हमारा कर्तव्य है। अवैध कब्जों को हटाकर वनों को उनके मूल स्वरूप में लौटाना होगा।”
— सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी (सारांश)
राज्य सरकार की अगली रणनीति
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद अब उत्तराखंड शासन और वन विभाग हरकत में आ गया है। विभाग अब उन क्षेत्रों की मैपिंग और सीमांकन (Demarcation) शुरू करेगा जहाँ जमीन खाली पड़ी है। अधिकारियों का कहना है कि वे कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए पहले चरण में उन भूखंडों को सुरक्षित करेंगे जहाँ किसी भी तरह का आवासीय ढांचा नहीं बना है।





