काठमांडू/नई दिल्ली: पृथ्वी के सबसे ऊँचे और दुर्गम स्थल माउंट एवरेस्ट से एक ऐसी तस्वीर सामने आई है जिसने पूरी दुनिया को हतप्रभ कर दिया है। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक वीडियो में एवरेस्ट के कैंप-साइट्स पर कूड़े का विशाल अंबार दिखाई दे रहा है। इंसानी लापरवाही की पराकाष्ठा को दर्शाते इस वीडियो के सामने आने के बाद नेटिजन्स और पर्यावरणविदों का गुस्सा फूट पड़ा है। लोगों का कहना है कि जिस पर्वत को पवित्र और अजेय माना जाता था, उसे अब इंसानों ने एक ‘ग्लोबल डंपिंग ग्राउंड’ (कचरा घर) बना दिया है।
घटना का मुख्य विवरण:
- वीडियो में दिखा खौफनाक नजारा: वायरल वीडियो में एवरेस्ट के ऊँचे बेस कैंप और उसके आसपास के रास्तों पर फटे हुए टेंट, प्लास्टिक की बोतलें, ऑक्सीजन सिलेंडर, खाली कैन और खाने के पैकेट बिखरे हुए दिखाई दे रहे हैं। बर्फ की सफेद चादर के बीच रंग-बिरंगा प्लास्टिक प्रदूषण की एक भयानक कहानी बयां कर रहा है।
- सोशल मीडिया पर आक्रोश: जैसे ही यह वीडियो एक्स (ट्विटर), इंस्टाग्राम और फेसबुक पर साझा किया गया, हजारों लोगों ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी। कई यूजर्स ने पर्वतारोहियों पर ‘स्यूडो-एडवेंचर’ (नकली साहसिक कार्य) करने का आरोप लगाया और कहा कि प्रकृति की खूबसूरती का आनंद लेने वाले लोग ही इसे नष्ट करने के जिम्मेदार हैं।
प्रदूषण के मुख्य कारण और प्रभाव:
- बढ़ती पर्वतारोहियों की संख्या: हर साल एवरेस्ट फतह करने के लिए सैकड़ों परमिट जारी किए जाते हैं। ऊँचाई पर थकावट और ऑक्सीजन की कमी के कारण कई पर्वतारोही अपना भारी सामान, टेंट और उपकरण वहीं छोड़ आते हैं, जो धीरे-धीरे पहाड़ पर जमा हो रहा है।
- पर्यावरण पर संकट: यह कचरा केवल दृश्य प्रदूषण नहीं है, बल्कि यह धीरे-धीरे बर्फ के साथ मिलकर नीचे के जल स्रोतों को भी प्रदूषित कर रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि माइक्रोप्लास्टिक अब एवरेस्ट की चोटियों तक पहुँच गया है, जो पारिस्थितिक तंत्र के लिए बड़ा खतरा है।
प्रशासनिक और स्वयंसेवी प्रयास:
- सफाई अभियान की चुनौती: नेपाल सरकार और विभिन्न एनजीओ अक्सर ‘एवरेस्ट क्लीनिंग कैंपेन’ चलाते हैं, जिसके तहत हर साल टनों कचरा नीचे लाया जाता है। हालांकि, नई कचरा पैदा होने की दर सफाई की गति से कहीं अधिक है।
कड़े नियमों की मांग: सोशल मीडिया पर लोग मांग कर रहे हैं कि नेपाल सरकार को उन पर्वतारोहियों पर भारी जुर्माना लगाना चाहिए जो अपना कचरा वापस नहीं लाते। कुछ लोगों ने सुझाव दिया है कि पर्वतारोहियों की संख्या पर सख्त कैपिंग (सीमा) लगाई जानी चाहिए।





