गोपेश्वर (चमोली): उत्तराखंड के पहाड़ी जंगलों को हर साल दहलाने वाली वनाग्नि (Forest Fire) से निपटने के लिए चमोली जिला प्रशासन और वन विभाग ने एक बड़ी कार्ययोजना तैयार की है। जिले के जंगलों को भीषण आग से बचाने के लिए विभाग ने 20 किलोमीटर लंबी ‘फायर लाइन’ बनाने का निर्णय लिया है। इस सुरक्षा घेरे को तैयार करने के मार्ग में आने वाले 5,184 पेड़ों को काटने की अनुमति दी गई है, ताकि आग लगने की स्थिति में उसे एक हिस्से से दूसरे हिस्से में फैलने से रोका जा सके।
क्या होती है फायर लाइन और यह क्यों है जरूरी?
वनाग्नि के प्रबंधन में ‘फायर लाइन’ एक रक्षात्मक दीवार की तरह काम करती है।
- आग का रास्ता रोकना: फायर लाइन जंगल के बीच का वह हिस्सा होता है जहाँ से पेड़ों और सूखी पत्तियों को पूरी तरह साफ कर दिया जाता है। इससे आग को आगे बढ़ने के लिए ईंधन (सूखी लकड़ी) नहीं मिलता और वह वहीं रुक जाती है।
- रणनीतिक महत्व: 20 किलोमीटर लंबी यह पट्टी जंगल को अलग-अलग खंडों में विभाजित करेगी, जिससे वन कर्मियों को आग बुझाने के दौरान आवाजाही में भी आसानी होगी।
परियोजना का विवरण और वृक्षों का चयन
वन विभाग के अनुसार, यह कदम जंगलों के व्यापक संरक्षण के लिए उठाया गया है।
- चिह्नित क्षेत्र: चमोली के उन संवेदनशील वन प्रभागों को चुना गया है जहाँ पिछले वर्षों में सबसे अधिक वनाग्नि की घटनाएं दर्ज की गई थीं।
- पेड़ों की कटाई: योजना के तहत कुल 5,184 पेड़ों का पातन (कटान) किया जाएगा। इनमें अधिकांश ऐसे पेड़ हैं जो फायर लाइन के निर्माण में बाधा बन रहे थे।
- नियमों का पालन: विभाग ने स्पष्ट किया है कि पेड़ों की कटाई के बदले नियमानुसार प्रतिपूरक वृक्षारोपण (Compensatory Afforestation) भी किया जाएगा ताकि पर्यावरण का संतुलन बना रहे।
वनाग्नि की चुनौती और विभाग की तैयारी
उत्तराखंड में गर्मी के सीजन (मार्च से जून) के दौरान चीड़ के जंगलों में आग लगने की घटनाएं आम हैं।
- चीड़ की पत्तियों का खतरा: जंगलों में बिछी चीड़ की सूखी पत्तियां (पिरुल) विस्फोटक ईंधन का काम करती हैं। फायर लाइन के बनने से इस खतरे को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकेगा।
- स्थानीय भागीदारी: वन विभाग इस कार्य में वन पंचायतों और स्थानीय ग्रामीणों का सहयोग भी ले रहा है ताकि आग की सूचना तत्काल मिल सके।
“जंगलों को बचाने के लिए कभी-कभी कड़े कदम उठाने पड़ते हैं। यह फायर लाइन हजारों एकड़ वन संपदा और वन्यजीवों को आग की भेंट चढ़ने से बचाएगी। हमारा लक्ष्य वनाग्नि के नुकसान को न्यूनतम करना है।” — वन विभाग अधिकारी, चमोली
पर्यावरणविदों की राय
हालांकि पेड़ों की कटाई को लेकर कुछ पर्यावरण प्रेमी चिंतित हैं, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यदि 5 हजार पेड़ काटकर लाखों पेड़ों को जलने से बचाया जा सकता है, तो यह वन प्रबंधन की एक वैज्ञानिक और अनिवार्य प्रक्रिया है





