ढाका/रंगपुर: बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। हाल ही में रंगपुर जिले में एक हिंदू युवक ‘दीपू’ की पीट-पीटकर की गई निर्मम हत्या ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। आरोप है कि दीपू को उसके ही एक मुस्लिम सहकर्मी द्वारा लगाए गए झूठे और निराधार आरोपों के बाद भीड़ ने निशाना बनाया। इस घटना में सबसे चौंकाने वाला पहलू स्थानीय पुलिस की कार्यप्रणाली है, जिस पर कट्टरपंथियों को मूक सहमति देने के आरोप लग रहे हैं।
घटनाक्रम: साजिश और उन्माद का खौफनाक मेल
- झूठा आरोप और भीड़ का जमावड़ा: प्रत्यक्षदर्शियों और स्थानीय सूत्रों के अनुसार, कार्यस्थल पर एक मामूली विवाद के बाद दीपू के मुस्लिम सहकर्मी ने उस पर धार्मिक भावनाओं को आहत करने का मनगढ़ंत आरोप लगाया। देखते ही देखते कट्टरपंथियों की उग्र भीड़ जमा हो गई।
- पुलिस की संदिग्ध भूमिका: परिजनों का आरोप है कि दीपू ने अपनी सुरक्षा के लिए पुलिस से गुहार लगाई थी। पुलिस उसे भीड़ से बचाने के बजाय प्रदर्शनकारियों के बीच ही ले गई, जहाँ उन्मादी भीड़ ने उसे पुलिस की मौजूदगी में ही पीटना शुरू कर दिया, जिससे उसकी मौत हो गई।
- अल्पसंख्यकों में दहशत: इस घटना के बाद रंगपुर और आसपास के इलाकों में रहने वाले हिंदू परिवारों में भारी डर का माहौल है। कई परिवारों ने सुरक्षा के अभाव में पलायन की चेतावनी दी है।
मानवाधिकारों का उल्लंघन और अंतरराष्ट्रीय चिंता
बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद से हिंदू समुदाय के खिलाफ हिंसा के मामलों में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि प्रशासन और कानून व्यवस्था के कमजोर होने का फायदा कट्टरपंथी संगठन उठा रहे हैं। दीपू की हत्या केवल एक व्यक्तिगत मामला नहीं है, बल्कि यह बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की गिरती सुरक्षा स्थिति और न्याय तंत्र की विफलता का प्रतीक बन गया है। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो इस बात की तस्दीक कर रहे हैं कि भीड़ को उकसाने के लिए सोची-समझी साजिश रची गई थी।




