प्रयागराज। नगीना लोकसभा सीट से सांसद और आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के मुखिया चंद्रशेखर आजाद को इलाहाबाद हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है। अदालत ने वर्ष 2017 में सहारनपुर में हुई जातीय हिंसा से जुड़े एक आपराधिक मामले में उनके खिलाफ चल रही कानूनी कार्यवाही और गैर-जमानती वारंट (NBW) को रद्द करने से साफ इनकार कर दिया है।
हाईकोर्ट का कड़ा रुख
- याचिका खारिज: न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की एकल पीठ ने चंद्रशेखर आजाद द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने निचली अदालत द्वारा जारी गैर-जमानती वारंट और पूरी कार्यवाही को चुनौती दी थी।
- साक्ष्य और आरोप: अदालत ने मामले के तथ्यों और उपलब्ध साक्ष्यों को देखने के बाद पाया कि आरोपी के खिलाफ मुकदमा चलाने के पर्याप्त आधार मौजूद हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कानून के समक्ष जनप्रतिनिधि और आम नागरिक में कोई भेद नहीं किया जा सकता।
- निचली अदालत में पेश होने का आदेश: हाईकोर्ट ने चंद्रशेखर को संबंधित निचली अदालत में हाजिर होकर अपनी बात रखने का निर्देश दिया है।
क्या था पूरा मामला?
- मई 2017 की हिंसा: सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में मई 2017 में दो समुदायों के बीच हिंसक झड़प हुई थी। इस दौरान तोड़फोड़, आगजनी और सरकारी कार्य में बाधा डालने के आरोप में चंद्रशेखर आजाद सहित कई अन्य लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी।
- अदालती कार्यवाही: इस मामले में पुलिस ने आरोप पत्र (चार्जशीट) दाखिल की थी, जिस पर संज्ञान लेते हुए सहारनपुर की कोर्ट ने चंद्रशेखर को तलब किया था। बार-बार पेश न होने पर उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया गया था, जिसे रुकवाने के लिए वे हाईकोर्ट पहुंचे थे।
सांसद की मुश्किलें बढ़ीं
वर्तमान में नगीना से सांसद चंद्रशेखर के लिए यह फैसला राजनीतिक और कानूनी रूप से मुश्किल भरा हो सकता है। यदि वे निचली अदालत में पेश नहीं होते हैं, तो पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर सकती है। उनके पास अब सुप्रीम कोर्ट जाने या संबंधित अदालत में आत्मसमर्पण कर नियमित जमानत के लिए आवेदन करने का विकल्प बचा है।





