देहरादून: उत्तराखंड की राजनीति में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के भीतर इन दिनों सांगठनिक बदलावों को लेकर हलचल तेज है। आगामी निकाय और भविष्य के विधानसभा चुनावों को देखते हुए प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा के सामने एक नई और ‘छोटी’ प्रदेश कार्यकारिणी का गठन करना सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। हाईकमान के सख्त निर्देश हैं कि इस बार कार्यकारिणी जम्बो (बड़ी) न होकर चुस्त-दुरुस्त और छोटी होनी चाहिए, जिसने पार्टी के भीतर दावेदारों की धड़कनें बढ़ा दी हैं।
चुनौती: कम पद और हजारों दावेदार
कांग्रेस में अब तक यह परंपरा रही है कि सभी गुटों को खुश करने के लिए ‘जम्बो कार्यकारिणी’ बनाई जाती थी, जिसमें उपाध्यक्षों और महामंत्रियों की लंबी फौज होती थी। लेकिन इस बार समीकरण बदल गए हैं:
- दिल्ली का निर्देश: कांग्रेस आलाकमान ने स्पष्ट किया है कि पदाधिकारियों की संख्या सीमित रखी जाए ताकि जवाबदेही तय हो सके।
- गुटीय संतुलन: उत्तराखंड कांग्रेस में हरीश रावत, प्रीतम सिंह और करन माहरा-यशपाल आर्य के अलग-अलग गुट सक्रिय हैं। छोटी कार्यकारिणी में अपने-अपने समर्थकों को जगह दिलाना हर गुट के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है।
- क्षेत्रीय संतुलन: कुमाऊं और गढ़वाल के बीच पदों का समान वितरण करना भी एक बड़ी सिरदर्दी है।
क्यों फंसा है पेच?
- वरिष्ठों का समायोजन: पार्टी के पास कई ऐसे वरिष्ठ नेता हैं जो पूर्व में बड़े पदों पर रह चुके हैं। छोटी कार्यकारिणी में उन्हें ‘एडजस्ट’ करना मुश्किल हो रहा है।
- युवा बनाम अनुभव: राहुल गांधी की टीम युवाओं को तरजीह देने के पक्ष में है, जबकि स्थानीय स्तर पर अनुभवी नेताओं की उपेक्षा करना पार्टी को भारी पड़ सकता है।
- असंतोष का डर: पदों की संख्या कम होने के कारण जो नेता बाहर छूटेंगे, उनके बागी होने या सक्रियता कम करने का खतरा बना हुआ है।
निकाय चुनाव की तलवार
प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा के लिए यह समय इसलिए भी नाजुक है क्योंकि राज्य में निकाय चुनाव सिर पर हैं। यदि कार्यकारिणी के गठन में देरी होती है या असंतोष पनपता है, तो इसका सीधा असर चुनाव प्रचार और जमीनी प्रबंधन पर पड़ेगा। भाजपा की मजबूत मशीनरी का मुकाबला करने के लिए माहरा को एक एकजुट टीम की जरूरत है, जो फिलहाल गुटबाजी के कारण मुश्किल नजर आ रही है।
भविष्य की रणनीति
सूत्रों की मानें तो करन माहरा बीच का रास्ता निकालने की कोशिश कर रहे हैं।
- जिलाध्यक्षों की भूमिका: कुछ वरिष्ठ नेताओं को जिलों की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है।
- विशेष आमंत्रित सदस्य: कार्यकारिणी छोटी रखकर बाकी दावेदारों को ‘विशेष आमंत्रित सदस्य’ के तौर पर जोड़ा जा सकता है ताकि उन्हें मान-सम्मान मिल सके।
राजनीतिक विश्लेषक की राय: “करन माहरा के लिए यह ‘अग्निपरीक्षा’ है। यदि वे एक संतुलित और प्रभावी छोटी टीम बनाने में सफल रहे, तो संगठन में उनकी पकड़ मजबूत होगी, अन्यथा गुटबाजी की खाई और गहरी हो सकती है।”





