पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों के पूजा स्थलों की दयनीय हालत एक बार फिर उजागर हुई है। माइनॉरिटी कॉकस पर गठित संसदीय समिति द्वारा समीक्षा की गई एक नई रिपोर्ट ने बताया है कि देश के कुल 1,817 हिंदू मंदिरों और गुरुद्वारों में से मात्र 37 स्थल ही सक्रिय हैं, जबकि शेष जगहों पर उपेक्षा, अतिक्रमण और संरक्षा के अभाव के कारण वे जर्जर या बंद पड़े हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान भर में मौजूद 1,285 हिंदू मंदिर और 532 गुरुद्वारे अधिकांशतः वीरान पड़े हैं या खंडहर में बदल चुके हैं। समिति ने इसे धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत के लिए गंभीर संकट बताते हुए तत्काल संरक्षण उपायों की जरूरत पर जोर दिया है।
संसदीय समिति का संयोजक बोला—नहीं की तो विरासत मिट जाएगी
संयोजक सीनेटर दानिश कुमार ने कहा कि यह स्थिति वर्षों की प्रशासनिक लापरवाही और कोर्ट/सरकारी संस्थाओं की उदासीनता का परिणाम है। उन्होंने अल्पसंख्यकों के लिए संवैधानिक सुरक्षा को व्यावहारिक रूप में लागू करने और नीति सुधारों की दिशा में तुरंत कदम उठाने की बात कही।
यह रिपोर्ट ऐसे समय सामने आई है जब भारत और पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक बयानबाजी तेज़ है। भारत ने हाल ही में पाकिस्तान की आलोचना को सिरे से खारिज करते हुए कहा था कि अल्पसंख्यकों के दमन के “बेहद खराब रिकॉर्ड” वाला पाकिस्तान दूसरों को उपदेश देने की स्थिति में नहीं है।
मंदिरों को बना दिया सरकारी दफ्तर, स्कूल और दुकानें
रिपोर्ट के निष्कर्ष पहले के सर्वेक्षणों से भी मेल खाते हैं।
2014 के एक सर्वे के मुताबिक—
- बंटवारे से पहले मौजूद 428 हिंदू मंदिरों में से
- 408 मंदिर 1990 के दशक में सरकारी दफ्तरों, स्कूलों, रेस्टोरेंट और दुकानों में बदल दिए गए थे।
इन पर निगरानी और संरक्षण की जिम्मेदारी इवैक्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड (ETPB) की है, जिसे रिपोर्ट ने अपने दायित्वों में “काफी हद तक असफल” बताया है। कई धार्मिक स्थलों पर स्थानीय स्तर पर कब्जा जारी है।
अल्पसंख्यकों पर बढ़ते अत्याचार, धर्म-परिवर्तन की खबरों ने बढ़ाई चिंता
पूजा स्थलों की दुर्दशा के साथ-साथ अल्पसंख्यकों पर बढ़ते सामाजिक और धार्मिक दबावों को लेकर भी रिपोर्ट में चिंता जताई गई है।
हाल ही में सिंध के मीरपुर साक्रो के एक सरकारी स्कूल में हिंदू लड़कियों पर पढ़ाई जारी रखने के लिए इस्लाम स्वीकार करने का दबाव डालने के आरोप लगे, जिसके बाद प्रांतीय स्तर पर जांच बिठाई गई है।
मानवाधिकार संगठनों के अनुसार—
- हर साल 1,000 से अधिक अल्पसंख्यक लड़कियों,
- जिनमें अधिकांश दलित परिवारों से होती हैं,
का जबरन धर्म परिवर्तन कराया जाता है। कमजोर कानून, स्थानीय प्रभावशाली समूहों का दबाव और धीमी न्याय व्यवस्था इस समस्या को और गंभीर बनाती है।
ईशनिंदा कानूनों का दुरुपयोग भी बड़ा कारण
पाकिस्तान में ईशनिंदा कानूनों का दुरुपयोग लगातार बढ़ रहा है।
अमेरिकी आयोग USCIRF की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार—
- देश में 700 से अधिक लोग ईशनिंदा के आरोपों में जेल में बंद हैं।
- कई मामलों में भीड़ द्वारा हिंसा, संपत्ति जलाने और जानलेवा हमलों जैसी घटनाएँ दर्ज की गईं।
अहमदिया समुदाय को इस माहौल का सबसे अधिक सामना करना पड़ रहा है, बावजूद इसके कि पाकिस्तान की इस्लामिक आइडियोलॉजी काउंसिल ने भी भीड़ हिंसा की संस्कृति पर चिंता जताई है।
सिर्फ 37 स्थल सक्रिय — गहरी चुनौती का प्रतीक
कागजों पर भले ही कई प्रगतिशील कानून मौजूद हों, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है।
रिपोर्ट के अनुसार, 1,817 धार्मिक स्थलों में से केवल 37 का चालू होना पाकिस्तान के अल्पसंख्यक समुदायों के सामने मौजूद चुनौतियों की गंभीरता को दर्शाता है।




