Friday, December 19, 2025

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वंदे मातरम का सफरनामा: जानें, 1875 में लिखा गया एक गीत कैसे बना भारत का राष्ट्रगीत

भारत के स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक बन चुका वंदे मातरम न केवल एक गीत है, बल्कि राष्ट्रीय चेतना और सांस्कृतिक स्वाभिमान का ऐसा स्तंभ है, जिसने पीढ़ियों को प्रेरित किया। 1875 में बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित यह गीत समय के साथ जन-आंदोलनों का स्वर बन गया और अंततः राष्ट्रगीत के रूप में स्थापित हुआ। इसकी यात्रा बांग्ला साहित्य से लेकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रिम मोर्चे तक पहुँचने की कहानी अपने आप में अनोखी है।

वंदे मातरम की रचना बंकिमचंद्र ने अपने उपन्यास आनंदमठ के लिए की थी। उस समय ब्रिटिश शासन भारत पर पूरी तरह हावी था, लेकिन बंगाल के साहित्यिक और सांस्कृतिक आंदोलनों में नई जागृति पैदा हो रही थी। माना जाता है कि बंकिमचंद्र ने मातृभूमि को देवी के रूप में चित्रित करते हुए इस गीत को लिखकर भारतीय समाज में आत्मसम्मान की नई ऊर्जा जगाने की कोशिश की। गीत की भाषा और शैली ने इसे तत्काल लोकप्रिय बना दिया, और यह बंगाल में सांस्कृतिक नवजागरण का हिस्सा बन गया।

बीसवीं सदी की शुरुआत में जब स्वतंत्रता आंदोलन तेजी पकड़ने लगा, तब वंदे मातरम लोगों के लिए संघर्ष और संकल्प का नारा बन गया। 1905 के बंग-भंग आंदोलन के दौरान यह गीत हर जुलूस और सभा में गूंजने लगा। इसके स्वर सुनते ही जनता में जोश भर जाता और लोग ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एकजुट हो जाते। महात्मा गांधी, अरविंदो, रविंद्रनाथ टैगोर समेत अनेक राष्ट्रीय नेताओं ने इस गीत को भारतीय स्वतंत्रता का संदेशवाहक माना।

1937 में कांग्रेस ने अपनी कार्यसमिति की बैठक में वंदे मातरम के पहले दो पदों को राष्ट्रगीत के रूप में स्वीकार किया। इसमें यह भी स्पष्ट किया गया कि गीत का उपयोग किसी धर्म या समुदाय के खिलाफ न होकर केवल राष्ट्रप्रेम की अभिव्यक्ति के रूप में किया जाएगा। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संविधान सभा में राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत पर विस्तृत चर्चा हुई, जिसके बाद 24 जनवरी 1950 को वंदे मातरम को आधिकारिक रूप से राष्ट्रगीत का दर्जा दिया गया।

आज, वंदे मातरम महज एक गीत नहीं, बल्कि भारत की आत्मा का प्रतीक है। यह गीत मातृभूमि के प्रति समर्पण, त्याग और गौरव की भावना को शब्द देता है। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर वर्तमान समय तक इसकी गूंज भारतीयों में एकता, राष्ट्रीय गौरव और सांस्कृतिक विरासत की याद दिलाती रहती है। 1875 में लिखा गया यह गीत कैसे एक राष्ट्र का स्वर बन गया, इसका सफर भारतीय इतिहास के सबसे प्रेरणादायक अध्यायों में से एक है।

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