प्रदेश में पहली बार जनजातीय स्कूलों के पाठ्यक्रम में श्रीमद्भगवद्गीता का अध्ययन शामिल किया गया है। शिक्षा विभाग द्वारा लिए गए इस निर्णय को राज्य के अकादमिक ढांचे में एक महत्वपूर्ण बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। अधिकारियों के अनुसार, गीता के श्लोक और उनसे जुड़ी नैतिक शिक्षाएं छात्रों में मूल्य-आधारित शिक्षा को सुदृढ़ करेंगी।
नई पहल के तहत आगामी शैक्षणिक सत्र से राज्यभर के जनजातीय आवासीय और अशासकीय स्कूलों में गीता के चयनित अध्याय पढ़ाए जाएंगे। इसके लिए विशेषज्ञों की एक समिति ने पाठ्य सामग्री तैयार की है, जिसमें छात्रों की उम्र को ध्यान में रखते हुए सरल भाषा और व्यावहारिक उदाहरणों का समावेश किया गया है।
शिक्षा विभाग का मानना है कि गीता अध्ययन से बच्चों में आत्मविश्वास, कर्तव्यनिष्ठा और सकारात्मक सोच विकसित होगी। विभागीय अधिकारियों ने यह भी स्पष्ट किया कि यह विषय किसी धार्मिक अनिवार्यता के रूप में नहीं, बल्कि एक नैतिक और दार्शनिक साहित्य के रूप में शामिल किया गया है, ताकि सभी समुदायों के छात्र समान रूप से इससे लाभ उठा सकें।
स्कूल प्रबंधन और शिक्षकों का कहना है कि पाठ्यक्रम में गीता अध्याय शामिल होने से छात्रों को भारतीय दर्शन और सांस्कृतिक विरासत की गहरी समझ प्राप्त होगी। कई अभिभावकों ने भी इस निर्णय को सराहा है और उम्मीद जताई है कि यह कदम बच्चों के चरित्र निर्माण में सकारात्मक भूमिका निभाएगा।
इस प्रकार, राज्य में पहली बार जनजातीय स्कूलों में गीता पाठ्यक्रम का हिस्सा बनने जा रहा है, जिसे शिक्षा जगत में एक महत्वपूर्ण और दूरगामी प्रभाव वाला कदम माना जा रहा है।





