पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों के पूजा स्थलों की बदहाल तस्वीर एक बार फिर सामने आई है। हालिया रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि देश में मौजूद 1817 मंदिरों और गुरुद्वारों में से केवल 37 ही अच्छी स्थिति में हैं, जबकि शेष धार्मिक स्थलों की हालत बेहद जर्जर या जीर्ण-शीर्ण हो चुकी है। यह आंकड़ा न केवल अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकारों पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि पाकिस्तान में सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण के प्रति गंभीर उदासीनता को भी दर्शाता है।
रिपोर्ट के अनुसार, कई मंदिर और गुरुद्वारे वर्षों से मरम्मत के इंतजार में हैं। कुछ स्थलों पर अवैध कब्जे की शिकायतें भी सामने आई हैं, जबकि कई पूजा स्थल सरकार और स्थानीय प्रशासन की उदासी नजरों के कारण पूरी तरह खंडहर में बदल गए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इन धार्मिक स्थलों की दुर्दशा पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदायों की उपेक्षा को स्पष्ट रूप से उजागर करती है।
अल्पसंख्यक समुदायों के प्रतिनिधियों का कहना है कि धार्मिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन मौजूदा हालात इसके विपरीत तस्वीर पेश करते हैं। उनका आरोप है कि कई बार अधिकारियों को इस दिशा में सुधार के लिए ज्ञापन दिए गए, लेकिन स्थिति में किसी तरह का ठोस सुधार देखने को नहीं मिला।
मानवाधिकार संगठनों ने भी इन धार्मिक स्थलों की स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उनका कहना है कि संरक्षण न होने से ये ऐतिहासिक स्थल धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं, जिससे आने वाली पीढ़ियों के लिए महत्वपूर्ण विरासत का नुकसान हो सकता है। साथ ही यह धार्मिक स्वतंत्रता और सामाजिक सौहार्द के सिद्धांतों पर भी चोट करता है।
फिलहाल, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पाकिस्तान से धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और उनके पूजा स्थलों के संरक्षण को लेकर सवाल उठ रहे हैं। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि पाकिस्तान सरकार इन आरोपों और चिंताओं के बीच क्या कदम उठाती है और क्या वह अपनी बहुसांस्कृतिक पहचान को बचाने के लिए इन धार्मिक धरोहरों के संरक्षण की दिशा में ठोस पहल करती है।





