कोलकाता में मंगलवार को ब्लॉक लेवल ऑफिसर्स (बीएलओ) ने अपनी मांगों को लेकर बड़ा विरोध प्रदर्शन किया। शहर के मध्य स्थित निर्वाचन आयोग के दफ़्तर के बाहर सुबह से ही भारी संख्या में बीएलओ एकत्र हुए और जोरदार नारेबाज़ी शुरू कर दी। अचानक बढ़ी भीड़ और उग्र होते माहौल के कारण इलाके में अफरा-तफरी का माहौल बन गया। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वे लंबे समय से अपनी सेवा शर्तों, मानदेय और कार्यभार से संबंधित समस्याओं को लेकर आवाज़ उठा रहे हैं, लेकिन उनकी बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा।
बीएलओ ने आरोप लगाया कि चुनाव प्रक्रिया के दौरान उन पर अत्यधिक दबाव डाला जाता है, लेकिन कार्य के अनुपात में न तो उन्हें उचित सुविधाएँ मिलती हैं और न ही सुरक्षा। प्रदर्शन में शामिल कर्मचारियों ने कहा कि वे हर चुनाव के दौरान घर-घर जाकर मतदाता सत्यापन, सूची अद्यतन और डेटा संग्रह जैसे महत्वपूर्ण कार्य करते हैं, लेकिन उन्हें स्थायी कर्मचारी का दर्जा तक नहीं दिया गया है। उनका कहना है कि जिम्मेदारियाँ बढ़ती जा रही हैं, जबकि वेतन और मानदेय में कोई सुधार नहीं हो रहा।
दफ़्तर के बाहर माहौल तब और गरमाता गया जब प्रदर्शनकारी मुख्य प्रवेश द्वार के सामने बैठ गए और कामकाज ठप कर दिया। स्थिति बिगड़ने पर पुलिस बल मौके पर पहुँचा और बैरिकेडिंग लगाकर भीड़ को नियंत्रित करने की कोशिश की। कुछ स्थानों पर धक्का-मुक्की की नौबत भी आई, हालांकि पुलिस ने हालात पर काबू पा लिया। प्रशासन ने प्रदर्शनकारियों से शांति बनाए रखने और अपनी मांगों को लिखित रूप में देने की अपील की।
इस बीच निर्वाचन आयोग के अधिकारियों ने कहा है कि वे बीएलओ की चिंताओं से अवगत हैं और मामले को शीर्ष स्तर पर उठाया जाएगा। हालांकि प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगों पर जल्द फैसला नहीं हुआ, तो वे आंदोलन को व्यापक रूप देंगे और भविष्य की चुनावी प्रक्रियाओं में सहयोग रोकने पर भी विचार कर सकते हैं।
कोलकाता में हुए इस विरोध ने बीएलओ की कार्यस्थितियों और चुनावी प्रबंधन से जुड़े बड़े सवाल फिर से खड़े कर दिए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि जमीनी स्तर पर काम करने वाले कर्मचारियों की समस्याओं का समाधान नहीं किया गया, तो आने वाले चुनावों में प्रबंधन पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।





