लखनऊ। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस लंबे समय से मजबूत संगठनात्मक ढांचे के अभाव से जूझ रही है, और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि हालिया रणनीतियों से पार्टी की स्थिति में कोई ठोस सुधार दिखाई नहीं दे रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, पार्टी नेतृत्व हरियाणा विधानसभा चुनाव में मिली हार से भी सबक लेता नहीं दिख रहा है, जबकि वहां की पराजय का एक प्रमुख कारण जमीनी स्तर पर संगठन की कमजोरी और कार्यकर्ताओं से संवाद की कमी थी।
उत्तर प्रदेश में भी लगभग यही स्थिति देखने को मिल रही है। बूथ स्तर पर नेटवर्क मजबूत करने, स्थानीय नेतृत्व को सक्रिय करने और कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित करने की जरूरत लंबे समय से जताई जाती रही है, लेकिन राजनीतिक स्तर पर अब तक कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए गए हैं। प्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं का मानना है कि संगठनात्मक ढील और निर्णयों में बार-बार देरी से कार्यकर्ता निरुत्साहित हैं और विपक्षी दलों को मजबूत होने का अवसर मिल रहा है।
विश्लेषकों का यह भी कहना है कि कांग्रेस की रणनीति केवल चुनावी घोषणा और अभियानों पर केंद्रित रहती है, जबकि वास्तविक शक्ति मजबूत संगठन, माइक्रो-मैनेजमेंट और स्थानीय नेतृत्व के सशक्तीकरण से आती है। हरियाणा के उदाहरण के बावजूद यूपी में स्थिति में सुधार नहीं होने से पार्टी के भविष्य को लेकर कार्यकर्ताओं के बीच भी चिंता बढ़ रही है।
पार्टी सूत्रों के अनुसार, विधानसभा चुनाव की तैयारी के लिए कुछ समितियाँ और अभियान प्रस्तावित हैं, लेकिन इन्हें अमल में लाने की गति बेहद धीमी बताई जा रही है। यदि मौजूदा स्थिति में ठोस और समयबद्ध सुधार नहीं हुआ, तो चुनावी प्रभाव पर इसका प्रतिकूल असर पड़ सकता है।





