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देहरादून, 20 नवंबर — राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में चूल्हे पर खाना पकाने की परंपरा अब महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बनती जा रही है। राजकीय दून मेडिकल कॉलेज और चिकित्सालय की ओपीडी रिपोर्ट के अनुसार, चूल्हे से निकलने वाले धुएँ के लगातार संपर्क में रहने से पर्वतीय इलाकों की महिलाओं में क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़ (सीओपीडी) के मामले चिंताजनक रूप से बढ़े हैं। विश्व सीओपीडी दिवस पर चिकित्सकों ने बताया कि प्रतिदिन करीब 100 मरीज ओपीडी में आते हैं, जिनमें से लगभग 60 सीओपीडी से पीड़ित होते हैं और इनमें लगभग 80 प्रतिशत मरीज पहाड़ों की महिलाएँ हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि पारंपरिक लकड़ी वाले चूल्हों का धुआँ मुख्य कारण है, जो फेफड़ों में जमकर स्थायी क्षति पहुंचाता है। ऊंचाई वाले इलाकों में ऑक्सीजन की कमी और जंगलों में लगी आग से हवा में बढ़ने वाला प्रदूषण भी जोखिम को बढ़ाता है। वरिष्ठ फेफड़ा विशेषज्ञ डॉ. मानवेंद्र गर्ग के अनुसार, सीओपीडी एक दीर्घकालीन रोग है जिसमें सांस की नलियों में अवरोध बन जाता है और मरीज को सांस लेने में गंभीर दिक्कत होती है। यह बीमारी अधिकतर 50 वर्ष से ऊपर के मरीजों में पाई जा रही है, लेकिन कई महिलाएँ 20–25 वर्षों से चूल्हे पर खाना पकाने के कारण पहले से ही धुएँ की मार झेल रही हैं, जिससे उनके फेफड़े अत्यधिक संवेदनशील हो चुके हैं।
चिकित्सकों का मानना है कि यह केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य नहीं, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य का बड़ा मुद्दा है। पर्वतीय गांवों में स्वच्छ कुकिंग टेक्नोलॉजी जैसे इम्प्रूव्ड स्टोव और सोलर चूल्हों को बढ़ावा देने, नियमित श्वसन जांच की व्यवस्था करने और महिलाओं को धुएँ से जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता है। बढ़ते मामलों ने स्पष्ट कर दिया है कि पारंपरिक चूल्हों से निकलने वाला धुआँ मामूली समस्या नहीं है और समय पर प्रभावी कदम न उठाए गए तो यह स्वास्थ्य संकट और गहरा सकता है।





