नई दिल्ली: देश में एंटीबायोटिक के अनियंत्रित और बेजा इस्तेमाल से बढ़ रही दवा-प्रतिरोधक क्षमता (Antimicrobial Resistance – AMR) को स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने गंभीर खतरा बताया है। इसी चिंता को दूर करने और दवाओं के नियंत्रित उपयोग के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा ने मंगलवार को नेशनल एक्शन प्लान – 2 (NAP-2) की औपचारिक शुरुआत की। यह योजना देशभर में एंटीबायोटिक के सही उपयोग, निगरानी और जनजागरूकता को सुदृढ़ करने पर केंद्रित है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, भारत में एंटीबायोटिक का अत्यधिक उपयोग न सिर्फ अस्पतालों बल्कि घरेलू उपचार के स्तर तक फैल चुका है, जिससे बैक्टीरिया कई दवाओं के प्रति प्रतिरोधक बन रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि स्थिति पर तुरंत नियंत्रण नहीं पाया गया, तो सामान्य संक्रमणों का इलाज भी भविष्य में मुश्किल या असंभव हो सकता है।
कार्यक्रम के शुभारंभ के दौरान नड्डा ने कहा कि एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस भारत के सामने खड़ी सबसे बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक है। उन्होंने डॉक्टरों, फार्मासिस्टों, अस्पतालों और जनता से जिम्मेदार उपयोग की अपील की। मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि NAP-2 के तहत न सिर्फ अस्पतालों, बल्कि पशुपालन, कृषि और खाद्य सुरक्षा क्षेत्रों में भी एंटीमाइक्रोबियल उपयोग पर कड़ी निगरानी रखी जाएगी।
NAP-2 में निम्न प्रमुख प्रावधान शामिल हैं:
एंटीबायोटिक उपयोग की राष्ट्रीय निगरानी प्रणाली को मजबूत करना
डॉक्टरों के लिए प्रिस्क्रिप्शन प्रोटोकॉल और अस्पतालों के लिए स्टूवर्डशिप कार्यक्रम
दवाओं की बिना पर्ची बिक्री पर कड़ा नियंत्रण
आम जनता के लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान
कृषि और पशुपालन में एंटीबायोटिक उपयोग के मानकों को कड़ा करना
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है जहां एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस सबसे तेजी से बढ़ रहा है। कई अस्पतालों में ऐसे बैक्टीरिया मिले हैं जिन पर आम दवाएं अब असर नहीं करतीं। इससे मरीजों की मृत्यु दर बढ़ रही है और इलाज महंगा होता जा रहा है।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों को NAP-2 के लिए विस्तृत रूपरेखा भेज दी है और निर्देश दिए हैं कि सभी स्वास्थ्य संस्थान इसे प्राथमिकता के साथ लागू करें। आने वाले महीनों में इसके प्रभावी क्रियान्वयन की नियमित समीक्षा भी की जाएगी।
सरकार ने स्पष्ट किया कि एंटीबायोटिक के दुरुपयोग को रोकना केवल चिकित्सकीय मुद्दा नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय मिशन है, जिसके लिए डॉक्टरों, मरीजों, दवा विक्रेताओं और सभी संबंधित क्षेत्रों के संयुक्त प्रयास आवश्यक हैं।





