वरिष्ठ कांग्रेस नेता शशि थरूर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रामनाथ गोयनका लेक्चर की सराहना करते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री का संबोधन देश की आर्थिक दिशा और सांस्कृतिक आत्मविश्वास—दोनों का सशक्त संदेश लेकर आया। थरूर ने कहा कि यह वक्त वही है, जब भारत को तेज विकास, नई सोच और अपनी विरासत पर गर्व की संयुक्त राह अपनाने की आवश्यकता है।
थरूर के अनुसार, प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में भारत की “रचनात्मक अधीरता” और औपनिवेशिक मानसिकता को पीछे छोड़ने पर जोर दिया। उन्होंने सोशल मीडिया पोस्ट में बताया कि पीएम मोदी ने भारतीय विरासत, भाषाओं और ज्ञान-परंपराओं के पुनर्जागरण के लिए 10 वर्ष के राष्ट्रीय मिशन की घोषणा की, जो देश को सांस्कृतिक आत्मविश्वास की नई दिशा दे सकता है।
थरूर ने कहा कि प्रधानमंत्री का यह संदेश स्पष्ट करता है कि भारत अब केवल एक ‘इमर्जिंग मार्केट’ नहीं, बल्कि दुनिया के लिए एक ‘इमर्जिंग मॉडल’ के रूप में स्थापित हो रहा है। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि प्रधानमंत्री ने सरकार की नीतियों को लोगों की समस्याओं के समाधान से जोड़ते हुए स्वयं को ‘इलेक्शन मोड’ में नहीं, बल्कि ‘इमोशनल मोड’ में रहने वाला बताया।
मैकाले की मानसिकता समाप्त करने के मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए थरूर ने कहा कि प्रधानमंत्री का भाषण 200 वर्ष पुरानी औपनिवेशिक सोच को मिटाने और भारतीय शिक्षा तथा भाषा-परंपराओं को मजबूत आधार देने पर केंद्रित था। हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि काश प्रधानमंत्री यह बताते कि रामनाथ गोयनका ने अंग्रेज़ी भाषा का उपयोग भारतीय राष्ट्रवाद की आवाज़ उठाने में किस प्रकार किया।
थरूर ने यह खुलासा भी किया कि तेज बुखार और खांसी के बावजूद वे कार्यक्रम में शामिल हुए क्योंकि इसे वे एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय विमर्श मानते हैं। उन्होंने कहा कि मतभेदों के बावजूद संवाद और बहस लोकतंत्र की शक्ति है, और इसी भावना से उन्होंने कार्यक्रम में उपस्थिति दर्ज कराई।





