मुंबई। महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर सत्ताधारी घटक दलों—भाजपा और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना—के बीच तनातनी की खबरों ने हलचल बढ़ा दी है। सरकार के भीतर मचे इस सियासी घमासान का संकेत उस समय और स्पष्ट हो गया जब शिंदे खेमे के सभी मंत्रियों ने राज्य मंत्रिमंडल की महत्वपूर्ण बैठक से दूरी बना ली। उनके अनुपस्थित रहने से राजनीतिक गलियारों में अटकलों का दौर तेज हो गया है।
सूत्रों के अनुसार, कैबिनेट बैठक में कुछ प्रशासनिक फैसलों और विभागीय पुनर्गठन से जुड़ी चर्चाएँ प्रस्तावित थीं। लेकिन बैठक से ठीक पहले शिंदे गुट के मंत्रियों ने सामूहिक रूप से शामिल न होने का निर्णय लिया। बताया जा रहा है कि हाल के दिनों में भाजपा की ओर से लिए गए कुछ एकतरफा निर्णयों और सत्ता-साझेदारी के समीकरणों को लेकर शिंदे गुट में असंतोष बढ़ता जा रहा है।
शिंदे खेमे के करीबी सूत्रों का दावा है कि मंत्रियों की अनुपस्थिति एक “संदेश” है कि गठबंधन चलाने के लिए पारदर्शी संवाद और समान भागीदारी जरूरी है। हालांकि, भाजपा नेताओं ने किसी भी तरह के मतभेद के दावे को खारिज करते हुए कहा है कि गठबंधन मजबूत है और मंत्रियों का बैठक में न शामिल होना उनका ‘व्यक्तिगत कार्यक्रमों’ के कारण लिया गया निर्णय है।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि आगामी चुनावों की तैयारी के दौर में सरकार के भीतर इस प्रकार की असहमति भविष्य में बड़े राजनीतिक समीकरणों का कारण बन सकती है। शिवसेना (शिंदे गुट) और भाजपा के बीच संबंधों में पहले भी कई बार रार देखने को मिली है, लेकिन कैबिनेट बैठक जैसे अहम मंच से दूरी बनाना इस बार संकेत कुछ गहरे होने की ओर इशारा करता है।
सरकार की ओर से अभी तक मंत्री अनुपस्थिति पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है। वहीं विपक्ष ने इस मौके को राजनीतिक हमला बोलने का अवसर बताया है। विपक्षी दलों ने कहा कि यह घटना साबित करती है कि “सरकार भीतर से कमजोर और अस्थिर” है।
घटनाक्रम पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं कि आने वाले दिनों में दोनों दलों के शीर्ष नेतृत्व के बीच बैठक होती है या मामला और तूल पकड़ता है।





