Wednesday, November 19, 2025

Top 5 This Week

Related Posts

G20 शिखर सम्मेलन: घोषणापत्र पर अमेरिका की आपत्ति

आगामी G20 शिखर सम्मेलन से पहले सदस्य देशों के बीच घोषणापत्र (लीडर्स डिक्लेरेशन) को लेकर मतभेद उभर आए हैं। सूत्रों के अनुसार, अमेरिका ने इस बार पारंपरिक संयुक्त घोषणापत्र को अपनाने के बजाय बिना साझा दस्तावेज के सम्मेलन समापन का प्रस्ताव रखा है। अमेरिका का तर्क है कि वैश्विक मुद्दों पर बढ़ती जटिलताओं के बीच सर्वसम्मति बनाना कठिन होता जा रहा है और ऐसी स्थिति में घोषणा पत्र पर जोर देना व्यावहारिक नहीं है।

अमेरिकी प्रतिनिधियों का मानना है कि कई विवादित मुद्दों—जैसे भू-राजनीतिक संघर्ष, व्यापार नीतियां, जलवायु प्रतिबद्धताएं और तकनीकी नियमन—पर G20 देशों की राय गहरी बंटी हुई है। इस कारण हर बार सर्वसम्मत घोषणा तैयार करना कठिन और समय लेने वाला होता है।
अमेरिका ने सुझाव दिया है कि सम्मेलन के परिणामों को अध्यक्षीय सार (चेयर समरी) के रूप में दर्ज किया जाए, जिसमें सर्वसम्मति की आवश्यकता नहीं होती।

अमेरिका की इस मांग को लेकर G20 की अध्यक्षता कर रहे दक्षिण अफ्रीका ने स्पष्ट कहा है कि इस विषय पर कोई भी निर्णय सभी सदस्य देशों की सहमति से ही लिया जा सकता है।
दक्षिण अफ्रीका के अनुसार, G20 एक बहुपक्षीय और सर्वसम्मति आधारित मंच है, इसलिए किसी भी वैकल्पिक व्यवस्था पर विचार तभी संभव है जब सभी सदस्य देश इसे स्वीकार करें।

दक्षिण अफ्रीकी प्रतिनिधियों ने यह भी रेखांकित किया कि आज के वैश्विक माहौल में संयुक्त बयान न आना अंतरराष्ट्रीय एकजुटता की कमी का संकेत देगा, जो G20 की विश्वसनीयता पर असर डाल सकता है।

कई देशों ने अमेरिका के प्रस्ताव पर चिंता जताई है। उनका मानना है कि यदि घोषणापत्र को अनिवार्य न रखा गया तो G20 की वह ताकत कमजोर हो जाएगी, जिसके कारण यह मंच लंबे समय से वैश्विक आर्थिक और रणनीतिक नीतियों में नेतृत्व दिखाता रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि घोषणा पत्र न अपनाने का मतलब होगा कि देशों के बीच सहमति का स्तर गिर रहा है, जो दुनिया को गलत संदेश दे सकता है।

शिखर सम्मेलन से पहले तैयारियों का अंतिम दौर चल रहा है और सभी सदस्य देशों के राजनयिक स्तर पर गहन बातचीत जारी है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या सम्मेलन के दौरान सभी देश एक साझा दस्तावेज पर सहमत होते हैं या फिर अमेरिका की मांग के अनुरूप वैकल्पिक प्रारूप अपनाया जाता है।

फिलहाल स्थिति यही संकेत देती है कि घोषणापत्र पर सहमति इस बार चुनौतीपूर्ण हो सकती है, और अंतिम फैसला शिखर बैठक में नेताओं के स्तर पर होने वाली बातचीत पर निर्भर करेगा।

Popular Articles