फरीदाबाद और दिल्ली में सक्रिय एक हाई–टेक मॉड्यूल ने सुरक्षा एजेंसियों के सामने आतंकवाद का ऐसा स्वरूप पेश किया है, जिसे विशेषज्ञ अब ‘व्हाइट कॉलर टेरर’ के नाम से पहचान रहे हैं। यह मॉड्यूल तकनीक, वित्तीय नेटवर्क और वर्चुअल प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर आतंक को नए, कहीं अधिक खतरनाक मोड़ पर ले जा रहा था।
सूत्रों के मुताबिक, इस मॉड्यूल का संचालन पारंपरिक आतंकवादी ढांचे की तरह नहीं था। इसमें शामिल सदस्य न तो हथियार लेकर चलते थे और न ही सीमाओं के पार ट्रेनिंग कैंप से लौटे थे, बल्कि यह समूह डिजिटल माध्यमों, फर्जी पहचान, बैंकिंग नेटवर्क और एन्क्रिप्टेड ऐप्स की आड़ में पूरी तरह कॉरपोरेट स्टाइल में काम कर रहा था।
एजेंसियों की जांच में सामने आया है कि यह मॉड्यूल फर्जी कंपनियों, डिजिटल वॉलेट्स, हवाला चैनल और विदेशी सर्वरों के माध्यम से धन जुटाने और उसे आगे आतंक गतिविधियों में भेजने का काम कर रहा था। कई संदिग्धों द्वारा विदेश में बैठे संचालकों से लगातार वर्चुअल मीटिंग और निर्देश लिए जाने की भी पुष्टि हुई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह मामला बताता है कि आतंकवाद अब केवल हथियारों और जिहादी कैंपों तक सीमित नहीं रहा। व्हाइट कॉलर पृष्ठभूमि, तकनीकी ज्ञान और साइबर विशेषज्ञता रखने वाले लोग अब आतंक के नए औजार बन रहे हैं। डिजिटल पेमेंट, क्रिप्टो ट्रांजेक्शन, क्लाउड–आधारित कम्युनिकेशन और फर्जी दस्तावेजों की आसान उपलब्धता ने ऐसे नेटवर्क को और अधिक सक्षम बना दिया है।
जांच एजेंसियां इस मॉड्यूल के नेटवर्क को खंगालने में जुटी हैं। कई संदिग्ध लिंक फरीदाबाद–दिल्ली के अलावा अन्य शहरों तक फैलने की आशंका है। साइबर सेल, इंटेलिजेंस यूनिट और केंद्रीय एजेंसियां मिलकर इसके अंतरराष्ट्रीय कनेक्शन की पड़ताल कर रही हैं।
एजेंसियों का मानना है कि यह मामला देश में बढ़ते वर्चुअल आतंकवाद की गंभीर चेतावनी है। आने वाले समय में ऐसे संगठनों द्वारा डिजिटल दुनिया के दुरुपयोग के खिलाफ और कड़े कानून व सुरक्षा उपाय करने की जरूरत होगी।
यह नेटवर्क भले ही उजागर हो गया हो, लेकिन इसकी पैठ ने स्पष्ट कर दिया है कि आतंकवाद अब नए स्वरूप में, अधिक शातिर और अधिक संगठित तौर पर सामने आ रहा है।





