Wednesday, November 12, 2025

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सीजेआई पर जूता उछालने की घटना पर दिल्ली हाईकोर्ट ने जताई कड़ी नाराजगी, कहा—अदालत की गरिमा पर हमला, उठाए जाएं सख्त कदम

नई दिल्ली। देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) पर सुनवाई के दौरान जूता उछाले जाने की घटना ने न्यायपालिका को झकझोर कर रख दिया है। इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए घटना की निंदा की और कहा कि यह न सिर्फ अदालत की गरिमा पर हमला है, बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के मूल मूल्यों का भी अपमान है। अदालत ने इस पर उचित और सख्त कार्रवाई” की जरूरत बताई है।

हाईकोर्ट ने कहा—‘यह स्वतंत्र न्यायपालिका पर आघात’

मुख्य न्यायाधीश पर जूता फेंकने की घटना पर स्वतः संज्ञान लेते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि अदालतें जनता के अधिकारों की अंतिम संरक्षक हैं और न्यायालय में इस तरह का व्यवहार अभूतपूर्व और अस्वीकार्य है। अदालत ने कहा कि इस तरह की घटनाएं न्यायिक व्यवस्था की स्वतंत्रता और गरिमा को ठेस पहुंचाती हैं, जिन्हें किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।

सुरक्षा एजेंसियों को दिए सख्त निर्देश

दिल्ली हाईकोर्ट ने घटना की जांच कर रही सुरक्षा एजेंसियों और पुलिस से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। अदालत ने कहा कि न्यायिक परिसर में सुरक्षा चूक किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है और भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सुरक्षा व्यवस्था की व्यापक समीक्षा की जानी चाहिए। अदालत ने संबंधित विभागों को निर्देश दिया कि अदालत परिसरों में प्रवेश व्यवस्था, सुरक्षा जांच और इलेक्ट्रॉनिक निगरानी प्रणाली को और सुदृढ़ किया जाए।

घटना के बाद देशभर में आक्रोश

मुख्य न्यायाधीश पर हमले जैसी इस घटना ने वकीलों, न्यायाधीशों और नागरिक समाज में गहरा आक्रोश पैदा किया है। देशभर के बार काउंसिलों और न्यायिक संगठनों ने इस कृत्य की कड़ी निंदा की है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने कहा कि न्यायालय पर हमला लोकतंत्र पर हमला है और दोषी के खिलाफ कठोरतम कार्रवाई होनी चाहिए।

न्यायालय की गरिमा सर्वोपरि: कानूनी विशेषज्ञ

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि न्यायालय के भीतर अनुशासन और सम्मान न्याय व्यवस्था की बुनियाद हैं। किसी भी प्रकार की हिंसा या असम्मानजनक कृत्य से अदालत की गरिमा को ठेस पहुंचती है और यह न्याय के प्रति जनता के भरोसे को कमजोर करता है।

सख्त दंड की मांग

अदालत ने साफ किया कि इस घटना को सामान्य उपद्रव या भावनात्मक प्रतिक्रिया के रूप में नहीं देखा जा सकता। यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता को चुनौती देने का प्रयास है, इसलिए दोषी के खिलाफ कानून के तहत कठोरतम दंड दिया जाना चाहिए।

 

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