नई दिल्ली। देश में मवेशियों, खासकर गायों की जान के लिए घातक साबित हो रहे थिलेरियोसिस (Theileriosis) रोग से अब राहत मिलने की उम्मीद है। भारतीय वैज्ञानिकों ने इस बीमारी के खिलाफ एक सस्ता और प्रभावी टीका विकसित करने में बड़ी सफलता हासिल की है। यह टीका न केवल बीमारी से बचाव करेगा, बल्कि संक्रमण की शुरुआती अवस्था में ही तेज और सटीक पहचान भी संभव बनाएगा। इस खोज को देश के पशुपालन क्षेत्र में एक बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि माना जा रहा है।
क्या है थिलेरियोसिस?
थिलेरियोसिस एक परजीवी जनित बीमारी है, जो मुख्य रूप से टिक (Ticks) यानी घुन के काटने से फैलती है। यह बीमारी गायों और भैंसों के रक्त में संक्रमण कर उनके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर देती है। गंभीर स्थिति में पशु की मौत तक हो सकती है। उत्तर भारत, खासकर हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में यह रोग बड़ी चुनौती बन चुका है।
भारतीय वैज्ञानिकों की बड़ी उपलब्धि
नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन इक्वाइन (एनआरसीई), हिसार और इंडियन वेटरनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (IVRI) के वैज्ञानिकों की टीम ने लंबे अनुसंधान के बाद इस रोग के लिए एक डीएनए-आधारित निदान किट और वैक्सीन का प्रोटोटाइप तैयार किया है। यह किट रोग की पहचान परंपरागत तरीकों की तुलना में तीन गुना तेज और दस गुना सस्ती है।
टीम के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. राजेश शर्मा ने बताया कि अब तक थिलेरियोसिस की जांच में 400 से 500 रुपये का खर्च आता था, जबकि नई तकनीक से यह लागत घटकर मात्र 50 से 60 रुपये रह जाएगी। वैक्सीन की एक खुराक से पशु को लंबे समय तक सुरक्षा मिलेगी।
टीका बनेगा गायों के लिए ‘जीवन कवच’
नए टीके से गायों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी और संक्रमण के फैलाव पर रोक लगेगी। खास बात यह है कि यह टीका स्थानीय नस्लों और क्रॉसब्रीड दोनों पर प्रभावी है। प्रारंभिक परीक्षणों में यह 90% तक सफल साबित हुआ है। वैज्ञानिकों का कहना है कि आने वाले कुछ महीनों में यह टीका बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए मंजूरी के चरण में पहुंचेगा।
देशभर में होगा परीक्षण और वितरण
केंद्रीय पशुपालन मंत्रालय ने इस तकनीक को “राष्ट्रीय महत्व की परियोजना” का दर्जा दिया है। मंत्रालय के अनुसार, अगले वर्ष तक इसे देश के सभी पशु चिकित्सा केंद्रों में उपलब्ध कराने की योजना है। इसके लिए निजी क्षेत्र की दवा कंपनियों से भी साझेदारी की जा रही है।
पशुपालकों के लिए बड़ी राहत
देशभर के पशुपालकों ने इस खोज का स्वागत किया है। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे दूध उत्पादन में कमी और पशुओं की मौतों के कारण हो रहे आर्थिक नुकसान में भारी कमी आएगी। यह कदम देश में दुग्ध उत्पादन आत्मनिर्भरता की दिशा में भी अहम साबित होगा।
केंद्रीय मंत्री बोले—‘पशु स्वास्थ्य सुरक्षा की नई शुरुआत’
केंद्रीय मत्स्य, पशुपालन एवं डेयरी मंत्री ने वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए कहा कि यह खोज भारत को पशु स्वास्थ्य संरक्षण के क्षेत्र में अग्रणी बनाएगी। उन्होंने कहा कि यह टीका “गायों के लिए कवच” की तरह काम करेगा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई मजबूती देगा।





