वॉशिंगटन। वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में बढ़ती चुनौतियों और चीन पर निर्भरता को कम करने की रणनीति के तहत अमेरिका ने दुर्लभ खनिजों (Rare Earth Minerals) के दोहन और उत्पादन के लिए 1.4 अरब डॉलर की नई साझेदारी की घोषणा की है। यह साझेदारी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में आत्मनिर्भर खनिज नीति को साकार करने की दिशा में एक बड़ा कदम मानी जा रही है।
अमेरिकी वाणिज्य विभाग द्वारा जारी जानकारी के अनुसार, यह समझौता सरकार और निजी क्षेत्र के बीच संयुक्त निवेश मॉडल के रूप में लागू किया जाएगा। इसका उद्देश्य दुर्लभ खनिजों के घरेलू उत्खनन, प्रसंस्करण और भंडारण की क्षमता को विकसित करना है, ताकि अमेरिका की उच्च-प्रौद्योगिकी, रक्षा और ऊर्जा उद्योगों को स्थायी आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके।
रिपोर्टों के मुताबिक, इस साझेदारी में कई प्रमुख अमेरिकी खनन और प्रौद्योगिकी कंपनियों के साथ-साथ ऊर्जा विभाग भी शामिल है। सरकार का लक्ष्य है कि अगले पांच वर्षों में देश की अपनी खनिज जरूरतों का अधिकांश हिस्सा घरेलू स्रोतों से पूरा किया जा सके। वर्तमान में अमेरिका इन खनिजों के लिए लगभग 80 प्रतिशत तक चीन पर निर्भर है।
अमेरिकी प्रशासन का कहना है कि दुर्लभ खनिज जैसे लिथियम, कोबाल्ट, नियोडिमियम और डिस्प्रोसियम आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिक वाहनों, रक्षा उपकरणों और सैटेलाइट तकनीक के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। हाल के वर्षों में चीन ने इन खनिजों के निर्यात नियंत्रण और मूल्य निर्धारण को लेकर दबाव की रणनीति अपनाई है, जिससे अमेरिका में वैकल्पिक आपूर्ति स्रोतों के विकास की आवश्यकता और बढ़ गई है।
राष्ट्रपति ट्रंप ने इस साझेदारी को “राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक संप्रभुता से जुड़ा निर्णय” बताया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका अब महत्वपूर्ण संसाधनों के लिए किसी एक देश पर निर्भर नहीं रह सकता।
विश्लेषकों का मानना है कि यह पहल न केवल अमेरिका की ऊर्जा और रक्षा स्वायत्तता को मजबूती देगी बल्कि वैश्विक बाजार में दुर्लभ खनिजों की प्रतिस्पर्धा का नया दौर भी शुरू करेगी। विशेषज्ञों का कहना है कि इस कदम से आने वाले वर्षों में अमेरिका अपने रणनीतिक संसाधनों के क्षेत्र में चीन को कड़ी चुनौती देने की स्थिति में आ सकता है।





