वॉशिंगटन/बीजिंग। अमेरिका और चीन के बीच लंबे समय से चली आ रही आर्थिक तनातनी के बीच एक बड़ा बदलाव देखने को मिला है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की हालिया बैठक में दोनों देशों ने कई अहम आर्थिक समझौतों पर सहमति जताई। इस दौरान अमेरिका ने चीन पर लगाए गए 10 प्रतिशत टैरिफ को घटाने की घोषणा की, जबकि चीन ने दुर्लभ खनिजों (Rare Earth Minerals) की आपूर्ति पर सहयोग बढ़ाने का वादा किया।
राष्ट्रपति ट्रंप ने बैठक के बाद जारी बयान में कहा कि यह निर्णय “आपसी समझ और वैश्विक आर्थिक स्थिरता की दिशा में एक बड़ा कदम” है। उन्होंने कहा, “हम दोनों देश ऐसे समाधान तलाश रहे हैं जो हमारे उद्योगों और उपभोक्ताओं के हित में हों।” ट्रंप ने यह भी स्पष्ट किया कि यह कदम अमेरिका की सुरक्षा नीतियों से समझौता नहीं है, बल्कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को संतुलित करने की रणनीति का हिस्सा है।
बैठक में दोनों देशों ने दुर्लभ खनिजों के क्षेत्र में सहयोग पर विशेष ध्यान दिया। ये खनिज इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, रक्षा प्रणालियों और सेमीकंडक्टर उद्योग के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। चीन इस समय विश्व का सबसे बड़ा दुर्लभ खनिज उत्पादक है, और अमेरिका इन संसाधनों के लिए बड़े पैमाने पर चीन पर निर्भर है। नए समझौते के तहत चीन ने इन खनिजों की आपूर्ति और कीमतों की स्थिरता बनाए रखने का आश्वासन दिया है।
हालांकि, अमेरिकी प्रशासन का चीन पर टैरिफ घटाने का निर्णय तब आया है जब बीजिंग रूस से तेल खरीदना जारी रखे हुए है, जिससे पश्चिमी देशों में कुछ असंतोष भी देखा गया। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए ट्रंप ने कहा, “हम चीन के ऊर्जा संबंधों पर नजर रख रहे हैं, लेकिन हमारा उद्देश्य आर्थिक संतुलन और व्यापारिक स्थिरता सुनिश्चित करना है।”
बैठक में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, बौद्धिक संपदा अधिकार और द्विपक्षीय निवेश जैसे मुद्दों पर भी चर्चा हुई। दोनों देशों ने यह सहमति जताई कि व्यापारिक विवादों को संवाद के माध्यम से सुलझाया जाएगा और किसी भी प्रकार की आर्थिक प्रतिस्पर्धा को “सहयोगी ढांचे” में बदला जाएगा।
विश्लेषकों का कहना है कि यह समझौता न केवल अमेरिका-चीन संबंधों में नरमी का संकेत देता है, बल्कि वैश्विक बाजारों को भी राहत पहुंचा सकता है। इसके बाद एशियाई बाजारों में हल्की तेजी और अमेरिकी डॉलर में स्थिरता दर्ज की गई।
राजनयिक हलकों में इसे ट्रंप-जिनपिंग संबंधों में “व्यावहारिक प्रगति” के रूप में देखा जा रहा है, जिसने दोनों महाशक्तियों के बीच चल रहे आर्थिक तनाव को कुछ हद तक कम किया है।





