Wednesday, December 3, 2025

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उत्तराखंड: बदली राजधानी दून की फिजा, जलवायु परिवर्तन का खतरा बढ़ा

देहरादून। कभी शांत और हरे-भरे वातावरण के लिए पहचाने जाने वाली राजधानी दून घाटी अब जलवायु परिवर्तन की चपेट में है। तेजी से घटते वन क्षेत्र, बढ़ता प्रदूषण और अनियंत्रित शहरीकरण न केवल यहां की जलवायु को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि आपदा का कारण भी बन रहे हैं। ताजा शोध से खुलासा हुआ है कि पिछले 24 वर्षों में देहरादून का 684 हेक्टेयर वन आवरण (ट्री कवर) नष्ट हो चुका है। इससे करीब 443 किलो टन कार्बन-डाई-ऑक्साइड वातावरण में घुल गई है, जिसने तापमान बढ़ाने और जैव विविधता पर संकट गहराने का काम किया है।

वैज्ञानिक शोध से हुआ खुलासा

देवभूमि उत्तराखंड विश्वविद्यालय के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के शोधकर्ता राहुल का शोध पत्र हाल ही में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायरमेंट एंड क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित हुआ है। इसमें साफ तौर पर बताया गया है कि 2001 से 2024 के बीच दून का वन आवरण लगातार घटा। वर्ष 2020 तक यहां 1,24,000 हेक्टेयर प्राकृतिक वन थे, लेकिन 2024 तक इनमें से 41 हेक्टेयर क्षेत्र पूरी तरह खत्म हो गया। शोध के अनुसार, सिर्फ इन पेड़ों की कटाई से 12.4 किलो टन कार्बन-डाई-ऑक्साइड वातावरण में घुल गई, जो सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देती है।

तापमान, पानी और जैव विविधता पर असर

विशेषज्ञों का कहना है कि वनों की अंधाधुंध कटाई से दून का औसत तापमान लगातार बढ़ रहा है। वहीं, भूजल स्तर घटने लगा है और कई जलस्रोत सूखने की कगार पर हैं। सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि जंगलों में रहने वाले दुर्लभ जीव-जंतुओं और पक्षियों की प्रजातियां संकट में हैं। पर्यावरणविदों का मानना है कि यदि यही स्थिति बनी रही तो दून की पारिस्थितिकी तंत्र (इकोसिस्टम) पर गंभीर खतरा मंडरा सकता है।

पर्यटन और शहरी विस्तार ने बढ़ाई समस्या

शोध में यह भी सामने आया है कि वर्ष 2019 से 2025 तक देहरादून और उत्तराखंड में पर्यटन में लगभग 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। हालांकि कोविड-19 के दौरान इसमें गिरावट आई, लेकिन उसके बाद पर्यटकों की संख्या तेजी से बढ़ी। अधिक पर्यटकों के आने से कूड़ा-कचरा, प्रदूषण और अवैध निर्माण ने जंगलों और प्राकृतिक संसाधनों को भारी नुकसान पहुंचाया। शहरी विस्तार के दबाव में न केवल वनों की कटाई हुई, बल्कि नदियों-नालों के किनारे भी अतिक्रमण और प्रदूषण बढ़ा है।

चेतावनी: नहीं रुके तो बढ़ेंगी आपदाएं

वैज्ञानिकों ने साफ चेतावनी दी है कि अगर दून में वनों की कटाई और शहरीकरण पर रोक नहीं लगी तो आने वाले समय में यहां भूस्खलन, बादल फटना और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएं और बढ़ सकती हैं। इससे न केवल पर्यावरणीय असंतुलन गहराएगा, बल्कि आम जनजीवन भी संकट में आ जाएगा।

देहरादून की बदलती फिजा यह संकेत दे रही है कि अब भी समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो राजधानी ही नहीं, पूरा उत्तराखंड जलवायु संकट के गंभीर दौर में प्रवेश कर जाएगा।

 

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