देहरादून। उत्तराखंड के पहाड़ हर साल भूस्खलन की घटनाओं से हिलते रहते हैं। बरसात का मौसम आते ही कहीं सड़कें टूट जाती हैं, तो कहीं गांवों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है। लेकिन वैज्ञानिकों के मुताबिक पहाड़ों पर भूस्खलन का एक और गंभीर खतरा लंबे समय से मौजूद है—भूस्खलन से बनी झीलें। हालिया शोध में यह तथ्य सामने आया है कि राज्य में ऐसी झीलें न केवल अतीत में बनीं, बल्कि उन्होंने समय-समय पर भारी तबाही भी मचाई।
इतिहास: विनाश की गवाही देती झीलें
हिमालय अभी भी भूगर्भीय दृष्टि से युवा और अस्थिर पर्वतमाला है। लगातार भूकंपीय गतिविधियां और भूस्खलन यहां आम बात है। ऐसे में कई बार नदियों का बहाव रुक जाता है और अस्थायी झीलें बन जाती हैं। ये झीलें देखने में जितनी खूबसूरत लगती हैं, वैज्ञानिकों के लिए उतनी ही चिंता का कारण होती हैं। दरअसल, इन झीलों के टूटने से अचानक आई बाढ़ ने कई बार तबाही का चेहरा दिखाया है।
स्थानीय उदाहरण: जब झील बनी आफत
• 1970 की अलकनंदा बाढ़: जोशीमठ क्षेत्र में भूस्खलन से नदी अवरुद्ध हुई और बनी झील टूटने पर अलकनंदा घाटी में भीषण बाढ़ आ गई थी।
• 1978 में भागीरथी घाटी: टेहरी जिले में भूस्खलन से झील बनने और उसके टूटने पर निचले इलाकों में भारी नुकसान हुआ।
• 2013 की केदारनाथ आपदा: मंदाकिनी घाटी में चोराबाड़ी झील फटने से आई बाढ़ ने केदारनाथ धाम और आसपास के क्षेत्रों में भीषण तबाही मचाई। हजारों लोग इस आपदा में मारे गए।
• हाल के उदाहरण: चमोली जिले में 2021 की रैणी आपदा में ग्लेशियर टूटने और मलबे से नदी अवरुद्ध होने से झील जैसे हालात बने, जिसने बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाया।
वैज्ञानिक शोध और ताज़ा खतरा
वैज्ञानिकों ने शोध में पाया है कि उत्तराखंड में दर्जनों ऐसी झीलें मौजूद हैं जो भूस्खलन या ग्लेशियर टूटने से बनीं। इनमें से कई झीलें आज भी बरकरार हैं और उनका अध्ययन बताता है कि वे किसी भी समय टूट सकती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण भारी और अचानक बारिश की घटनाएं बढ़ रही हैं, जिससे ऐसी झीलों के बनने और टूटने का खतरा दोगुना हो गया है।
विशेषज्ञों की राय
भूगर्भ वैज्ञानिकों और आपदा प्रबंधन विशेषज्ञों का सुझाव है कि—
• राज्य में भूस्खलन से बनी सभी झीलों का विस्तृत सर्वेक्षण कराया जाए।
• सैटेलाइट और ड्रोन तकनीक के जरिए उनकी निरंतर निगरानी हो।
• संवेदनशील क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को जागरूक किया जाए।
• झीलों के पास अलर्ट सिस्टम विकसित किए जाएं ताकि आपदा की स्थिति में समय रहते लोगों को सुरक्षित निकाला जा सके।
उत्तराखंड की प्राकृतिक सुंदरता के पीछे छिपा यह खतरा किसी भी समय बड़े पैमाने पर तबाही ला सकता है। वैज्ञानिकों की चेतावनी स्पष्ट है—यदि भूस्खलन से बनी झीलों की अनदेखी जारी रही तो राज्य को भविष्य में और बड़ी आपदाओं का सामना करना पड़ सकता है।





