चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग बुधवार को तिब्बत की राजधानी ल्हासा पहुँचे। उन्होंने तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र की स्थापना के 60 वर्ष पूरे होने पर आयोजित कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। यह जिनपिंग का तिब्बत का दूसरा दौरा है, जबकि उनसे पहले सिर्फ एक राष्ट्रपति (जियांग जेमिन, 1990) ही यहां गए थे।
दौरे की अहमियत
- जिनपिंग का यह दौरा उस समय हुआ है जब तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन के बांध प्रोजेक्ट और दलाई लामा के उत्तराधिकारी विवाद को लेकर तनाव बढ़ा हुआ है।
- उन्होंने तिब्बत को “स्थिर समाजवादी क्षेत्र” बनाने और राजनीतिक स्थिरता, जातीय एकता व धार्मिक संतुलन पर जोर दिया।
- चीन तिब्बत को अपना अभिन्न हिस्सा बताता है, जबकि बड़ी संख्या में तिब्बती इसे दमन और सांस्कृतिक हस्तक्षेप मानते हैं।
भारत–चीन के लिए रणनीतिक महत्व
- तिब्बत भारत-चीन सीमा का अहम हिस्सा है और यहां से चीन सीधे हिमालयी क्षेत्रों की निगरानी कर सकता है।
- ब्रह्मपुत्र समेत कई बड़ी नदियाँ यहीं से निकलती हैं। चीन का बड़ा बांध प्रोजेक्ट भारत और बांग्लादेश के लिए जल संकट की आशंका बढ़ा रहा है।
- भारत ने दलाई लामा और तिब्बती शरणार्थियों को शरण दी हुई है, जो भारत-चीन रिश्तों में तनाव का प्रमुख कारण है।
दलाई लामा विवाद
- 1959 के विद्रोह के बाद से दलाई लामा भारत के धर्मशाला में हैं और तिब्बत के लिए संघर्ष जारी रखे हुए हैं।
- चीन ने 2007 में कानून बनाकर दलाई लामा के उत्तराधिकारी चयन पर अपना नियंत्रण जताया है।
- तिब्बती समुदाय इसे अपनी धार्मिक आस्था पर हमला मानते हैं।
कुल मिलाकर, जिनपिंग का यह दौरा केवल उत्सव नहीं बल्कि रणनीतिक और वैचारिक संदेश है — जिसमें चीन तिब्बत पर अपनी पकड़ और दलाई लामा विवाद पर अपनी स्थिति को और मजबूत करना चाहता है।





