Monday, August 11, 2025

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पाकिस्तान में अल्पसंख्यक बच्चों पर बढ़ रहा जबरन धर्मांतरण और उत्पीड़न का खतरा

पाकिस्तान में हिंदू और ईसाई समुदाय के बच्चों को सुनियोजित तरीके से जबरन धर्मांतरण का शिकार बनाया जा रहा है। पाकिस्तान के राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग (एनसीआरसी) की हालिया रिपोर्ट ने इस गंभीर समस्या को उजागर करते हुए कहा है कि यह घटनाएं कोई छिटपुट मामला नहीं, बल्कि एक व्यवस्थित और संस्थागत रूप से सक्षम प्रथा बन चुकी हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, पीड़ित बच्चों को धमकियों, शारीरिक प्रताड़ना और सामाजिक दबाव के जरिये अपनी आस्था बदलने के लिए मजबूर किया जाता है।
क्रिश्चियन डेली इंटरनेशनल में प्रकाशित निष्कर्ष बताते हैं कि हजारों अल्पसंख्यक बच्चे—विशेषकर हिंदू और ईसाई—रोजाना अपहरण, जबरन विवाह, बंधुआ मजदूरी और बाल श्रम जैसी परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं। इन घटनाओं में संस्थागत पूर्वाग्रह और कानून प्रवर्तन की कमी मुख्य कारण बताए गए हैं।

लड़कियों को निशाना बनाकर जबरन विवाह

एनसीआरसी की रिपोर्ट में सबसे भयावह पहलू यह सामने आया है कि अल्पसंख्यक समुदायों की किशोरियों का अपहरण कर उनसे जबरन इस्लाम धर्म कबूल करवाया जाता है और फिर उनकी शादी बड़े उम्र के मुस्लिम पुरुषों से करवा दी जाती है। यह प्रवृत्ति इतनी व्यापक हो चुकी है कि इसे रोकने के लिए पीड़ित परिवारों के पास बहुत कम कानूनी रास्ते बचते हैं।

पंजाब प्रांत में सबसे गंभीर हालात

अप्रैल 2023 से दिसंबर 2024 के बीच एनसीआरसी को 27 आधिकारिक शिकायतें मिलीं, जो हत्या, अपहरण, जबरन धर्मांतरण और नाबालिग विवाह से जुड़ी थीं। देश के सबसे बड़े और घनी आबादी वाले प्रांत पंजाब में यह स्थिति सबसे गंभीर है। जनवरी 2022 से सितंबर 2024 के बीच अल्पसंख्यक बच्चों के खिलाफ रिपोर्ट की गई कुल हिंसक घटनाओं में से 40 प्रतिशत इसी प्रांत में हुईं। पुलिस आंकड़ों के अनुसार, इस अवधि में पीड़ितों में 547 ईसाई, 32 हिंदू, दो अहमदिया और दो सिख बच्चे शामिल थे।

शिक्षा संस्थानों में भी भेदभाव

रिपोर्ट में शिक्षा क्षेत्र में व्याप्त भेदभाव पर भी गंभीर सवाल उठाए गए हैं। एकल राष्ट्रीय पाठ्यक्रम (सिंगल नेशनल करिकुलम) की आलोचना करते हुए एनसीआरसी ने कहा है कि इसमें धार्मिक समावेश का अभाव है। हिंदू और ईसाई छात्रों को अपनी आस्था के विरुद्ध इस्लामी विषय पढ़ने के लिए मजबूर किया जाता है। स्कूलों में उन्हें न केवल सामाजिक दूरी का सामना करना पड़ता है, बल्कि कई बच्चे आगे बैठने, प्रश्न पूछने या यहां तक कि साझा गिलास से पानी पीने में भी हिचकते हैं।
कई मामलों में उनकी धार्मिक मान्यताओं का मजाक उड़ाया जाता है और उन्हें “ईश्वरीय पुरस्कार” पाने के लिए इस्लाम अपनाने की सलाह दी जाती है। यह माहौल बच्चों में मानसिक तनाव और आत्मसम्मान की कमी पैदा करता है।

कानून और व्यवस्था की कमजोरी

एनसीआरसी की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पुलिस और न्यायिक तंत्र में गहरे पैठे पूर्वाग्रह और सामाजिक दबाव के कारण अपराधियों को अक्सर सजा नहीं मिलती। पीड़ित परिवार, खासकर गरीब और ग्रामीण क्षेत्रों के, शिकायत दर्ज कराने से भी डरते हैं क्योंकि इससे उन्हें और ज्यादा प्रताड़ना का खतरा होता है।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और मानवाधिकार चिंता

मानवाधिकार संगठनों ने पाकिस्तान सरकार से इस मुद्दे पर तत्काल कार्रवाई की अपील की है। उनका कहना है कि जबरन धर्मांतरण न केवल धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है, बल्कि बच्चों के मौलिक अधिकारों पर भी सीधा हमला है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह मुद्दा पाकिस्तान की छवि को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।

सुधार की जरूरत

विशेषज्ञों का मानना है कि इस समस्या के समाधान के लिए सख्त कानून, त्वरित न्यायिक प्रक्रिया, स्कूल पाठ्यक्रम में धार्मिक समावेश और कानून प्रवर्तन एजेंसियों में संवेदनशीलता प्रशिक्षण की आवश्यकता है। साथ ही, पीड़ित परिवारों को कानूनी और मनोवैज्ञानिक सहायता मुहैया कराना भी जरूरी है।
एनसीआरसी की यह रिपोर्ट एक चेतावनी है कि अगर पाकिस्तान ने जल्द कदम नहीं उठाए, तो न केवल उसके अल्पसंख्यक समुदायों का भविष्य खतरे में पड़ेगा, बल्कि देश में सामाजिक सद्भाव भी गहरे संकट में पड़ सकता है।

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