ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत द्वारा पाकिस्तान के भीतर ब्रह्मोस मिसाइलों के उपयोग को लेकर अमेरिका में खलबली मच गई थी। वॉल स्ट्रीट जर्नल (WSJ) की एक चौंकाने वाली रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को आशंका थी कि भारत इन मिसाइलों में परमाणु वारहेड भी जोड़ सकता है। इससे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इतने चिंतित हो गए कि उन्होंने सीधे हस्तक्षेप करने का निर्णय लिया।
ट्रंप को सताया परमाणु युद्ध का डर
WSJ रिपोर्ट में ट्रंप प्रशासन के मौजूदा और पूर्व अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने भारत द्वारा ब्रह्मोस के इस्तेमाल को संभावित परमाणु खतरे के रूप में देखा। उन्हें आशंका थी कि अगर भारत-पाक तनाव और बढ़ा, तो ब्रह्मोस में परमाणु बम लगाया जा सकता है – और जवाबी हमले में पाकिस्तान भी परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है।
इसी वजह से राष्ट्रपति ट्रंप ने तत्कालीन उपराष्ट्रपति जेडी वेंस और विदेश मंत्री मार्को रुबियो को भारत और पाकिस्तान के शीर्ष नेतृत्व से डायरेक्ट डिप्लोमैटिक बातचीत करने को कहा।
भारत ने स्पष्ट किया – ब्रह्मोस नॉन-न्यूक्लियर हथियार है
भारतीय रक्षा प्रतिष्ठान का रुख स्पष्ट है कि ब्रह्मोस मिसाइल पारंपरिक हथियारों से ही लैस रहती है।
• इसका संचालन सेना की तोपखाना रेजिमेंट, वायुसेना और नौसेना करती हैं।
• भारत की परमाणु हथियारों से लैस मिसाइलें केवल रणनीतिक बल कमान (SFC) के नियंत्रण में होती हैं।
• ब्रह्मोस मिसाइलों में 200 से 300 किलो तक के पारंपरिक विस्फोटक लगाए जाते हैं।
भारतीय दूतावास ने भी WSJ से बातचीत में दोहराया कि भारत ‘No First Use’ नीति का पालन करता है, इसलिए किसी भी परमाणु हमले की आशंका निर्मूल है।
ट्रंप को क्यों हुआ ब्रह्मोस से इतना डर?
रिपोर्ट के अनुसार, मई की शुरुआत में भारत ने पाकिस्तान के वायुसेना रनवे, बंकर और हैंगर पर ब्रह्मोस मिसाइलों से हमले किए थे।
ब्रह्मोस की विशेषताएं जो अमेरिका को चिंता में डाल गईं:
• सुपरसोनिक स्पीड: 3450 किमी/घंटा (Mach 2.8-3.0)
• अल्ट्रा-लो फ्लाइट पाथ: अंतिम चरण में 10 मीटर की ऊंचाई से उड़ती है
• ‘फायर एंड फॉरगेट’: लक्ष्य भेदने के बाद मार्गदर्शन की जरूरत नहीं
• बहुस्तरीय संचालन: थलसेना, नौसेना और वायुसेना के लिए उपयुक्त
• अत्याधुनिक रडार चकमा प्रणाली और दिशा-परिवर्तन क्षमता
इन खूबियों ने अमेरिका को इस बात को लेकर बेचैन कर दिया था कि यदि ये मिसाइलें परमाणु हथियारों से लैस हों, तो प्रतिक्रिया का समय लगभग शून्य होगा।
ब्रह्मोस: भारत-रूस सहयोग की मिसाइल
• ब्रह्मोस का नाम ब्रह्मपुत्र और मॉस्कवा नदियों से लिया गया है।
• यह भारत के DRDO और रूस के NPO Mashinostroyenia की 1998 में शुरू हुई साझेदारी का परिणाम है।
• अब इसका निर्माण भारत में ही हो रहा है और यह एक्सपोर्ट के लिए भी तैयार है।