रूस के सुदूर-पूर्वी कामचटका प्रायद्वीप में आए 8.8 तीव्रता के भूकंप ने न केवल पृथ्वी की सतह को झकझोर दिया, बल्कि वैज्ञानिकों की दशकों पुरानी भविष्यवाणियों को भी चुनौती दी है। यह घटना 2011 में जापान के फुकुशिमा आपदा के बाद सबसे शक्तिशाली भूकंप मानी जा रही है।
नेशनल ज्योग्राफिक की रिपोर्ट के अनुसार, समुद्र तल के नीचे हुई इस महाविस्फोट जैसी हलचल ने भारी ऊर्जा को मुक्त किया। वाशिंगटन विश्वविद्यालय के भूकंप वैज्ञानिकों का कहना है कि यह क्षेत्र पहले से ही विनाशकारी भूकंपों के लिए जाना जाता है, लेकिन अनुमान था कि अगली बड़ी भूगर्भीय दरार सदी के अंत तक ही फटेगी। मगर इस बार यह समय से कई दशक पहले ही सक्रिय हो गई।
रिंग ऑफ फायर फिर उग्र
यह क्षेत्र दुनिया के सबसे खतरनाक टेक्टोनिक बेल्ट – रिंग ऑफ फायर का हिस्सा है, जो दक्षिण अमेरिका से लेकर रूस के कामचटका, जापान, फिलीपींस, इंडोनेशिया और न्यूजीलैंड तक फैला है। फिलहाल क्षेत्र में आफ्टरशॉक्स का सिलसिला जारी है और समुद्री लहरों में असामान्य हलचल देखी जा रही है।
सुनामी की आशंका अपेक्षाकृत कम
हालांकि समुद्र में उठी सुनामी लहरें पहले जैसी घातक नहीं रहीं, लेकिन खतरा अभी टला नहीं है। समुद्रतटीय बस्तियों में दहशत का माहौल है और लगातार निगरानी जारी है।
भारत के लिए चेतावनी के संकेत
कामचटका का यह मेगाक्वेक भारत के लिए भी एक गहरी चेतावनी है, खासकर उन क्षेत्रों के लिए जो भूकंप और सुनामी के उच्च जोखिम वाले ज़ोन में आते हैं।
भारतीय भूकंपीय हाई-रिस्क ज़ोन:
- अंडमान-निकोबार सबडक्शन ज़ोन:
भारत का सबसे संवेदनशील भूकंपीय क्षेत्र, जहां मेगाथ्रस्ट भूकंप और सुनामी की आशंका हमेशा बनी रहती है। - पूर्वी तटीय राज्य:
तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल जैसे राज्य 2004 की तरह दोबारा सुनामी की चपेट में आ सकते हैं। - हिमालयन फॉल्ट लाइन:
उत्तराखंड, हिमाचल, सिक्किम, कश्मीर और असम में बड़े भूकंपों की संभावना बनी रहती है।
यह क्षेत्र टेक्टोनिक रूप से सबसे सक्रिय है, जहां भूकंप की तीव्रता और प्रभाव दोनों अधिक हो सकते हैं।