त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में उत्तराखंड में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी ने जोरदार प्रदर्शन करते हुए ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। पार्टी को राज्यभर में 216 सीटें मिलीं, और यदि हरिद्वार की 44 सीटों को जोड़ा जाए तो यह आंकड़ा 260 तक पहुंचता है। यह अब तक की सबसे बड़ी पंचायत चुनावी जीत मानी जा रही है, जिससे राज्य के सभी जिलों में भाजपा के बोर्ड बनने की संभावना प्रबल हो गई है।
हालांकि, इस जीत के बीच भाजपा को एक और संदेश साफ मिला — मतदाताओं ने परिवारवाद को सिरे से खारिज कर दिया। जिन क्षेत्रों में भाजपा नेताओं ने अपने परिजनों को मैदान में उतारा, वहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
नैनीताल से विधायक सरिता आर्या के बेटे रोहित आर्या, सल्ट विधायक महेश जीना के बेटे करन, बदरीनाथ के पूर्व विधायक राजेंद्र भंडारी की पत्नी रजनी भंडारी, लोहाघाट के पूर्व विधायक पूरन सिंह फर्त्याल की बेटी, लैंसडौन विधायक दिलीप रावत की पत्नी, और भीमताल विधायक राम सिंह कैड़ा की बहू — जैसे कई प्रमुख चेहरों को जनता ने नकार दिया।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि पार्टी ने परिजनों के बजाय ज़मीनी स्तर पर मज़बूत दावेदारों को टिकट दिया होता, तो नतीजे और भी बेहतर हो सकते थे।
जहां भाजपा कांग्रेस पर अक्सर परिवारवाद का आरोप लगाती रही है, वहीं इस बार मतदाताओं ने भाजपा को इस मामले में कठोर संदेश दिया है।