Saturday, July 26, 2025

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बढ़ती महंगाई और अमेरिकी टैरिफ के बीच पीएम इशिबा की साख दांव पर, आसान नहीं होगी चुनावी टक्कर

जापान के प्रधानमंत्री शिंजो इशिबा की कुर्सी इस समय भारी दबाव में है। रविवार को होने जा रहे ऊपरी सदन के चुनाव से पहले उनके सामने कई गंभीर चुनौतियां खड़ी हैं। देश में महंगाई तेजी से बढ़ रही है, चावल जैसी जरूरी वस्तुओं की कीमतें दोगुनी हो चुकी हैं और अमेरिका की तरफ से भारी टैरिफ का दबाव भी है। इस सबके बीच इशिबा की लोकप्रियता गिरती जा रही है, जिससे उनके राजनीतिक भविष्य पर सवाल खड़े हो गए हैं।

ऊपरी सदन की कुल 248 सीटों में से आधी पर रविवार को चुनाव हो रहे हैं। प्रधानमंत्री इशिबा की पार्टी एलडीपी और उसकी सहयोगी कोमितो को बहुमत के लिए कम से कम 50 सीटें जीतनी होंगी। हालांकि पहले से उनके पास 75 गैर-चुनावी सीटें हैं, लेकिन फिर भी यह पिछली 141 सीटों की संख्या से बड़ी गिरावट होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि बहुमत नहीं मिलता तो एलडीपी के भीतर ही इशिबा को हटाने की मांग तेज हो सकती है।

महंगाई और चावल संकट ने बढ़ाई मुश्किल
देश की जनता महंगाई, घटती आय और सामाजिक सुरक्षा भुगतान के बोझ से परेशान है। चावल की कीमतें सप्लाई की कमी और वितरण तंत्र की जटिलता के कारण दोगुनी हो चुकी हैं। इस वजह से बाजारों में पैनिक बाइंग देखी जा रही है। इस मुद्दे पर एक कृषि मंत्री को इस्तीफा देना पड़ा, जिसके बाद शिंजिरो कोइज़ुमी को नियुक्त किया गया। उन्होंने भंडारण से चावल रिलीज़ कर हालात को संभालने की कोशिश की है, लेकिन प्रभाव सीमित है।

ट्रंप के टैरिफ और व्यापार दबाव ने बढ़ाई चिंता
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी इशिबा पर व्यापार समझौते को लेकर दबाव बना रहे हैं। ट्रंप ने जापान पर अमेरिकी कारों और चावल की बिक्री में प्रगति न करने का आरोप लगाया है। 1 अगस्त से 25 प्रतिशत टैरिफ लागू होना है, जिससे जापान की अर्थव्यवस्था को और झटका लग सकता है। इशिबा ने चुनाव से पहले कोई समझौता करने से इनकार किया है, लेकिन बाद में भी सफलता की कोई गारंटी नहीं है।

विदेशियों पर सख्ती और उभरता राष्ट्रवाद
इस बार का चुनाव एक और मुद्दे से प्रभावित हो रहा है। विदेशी नागरिकों पर सख्त रवैया। संसेइतो पार्टी ‘जापानीज पहले’ एजेंडे के साथ आई है, जो विदेशियों को कल्याणकारी योजनाओं से बाहर रखने और नागरिकता नियमों को कड़ा करने की मांग कर रही है। यह पार्टी पारंपरिक लिंग भूमिकाओं और वैक्सीन विरोध जैसे मुद्दों को भी उठा रही है। आलोचकों का कहना है कि यह एजेंडा चुनावी प्रचार और सोशल मीडिया पर जेनोफोबिया फैला रहा है।

विपक्ष बिखरा हुआ, पर प्रभाव बढ़ रहा
हालांकि विपक्षी पार्टियां जैसे सीडीपीजे, डीपीपी और संसेइतो जनता के बीच लोकप्रिय हो रही हैं, लेकिन वे एकजुट नहीं हैं। इशिबा की कमजोर नेतृत्वशैली से निराश सत्तारूढ़ पार्टी के समर्थक इन्हें विकल्प के रूप में देख रहे हैं। परंतु अब तक ये पार्टियां एक साझा मंच नहीं बना पाई हैं। अगर इशिबा की पार्टी बहुमत खोती है तो नई राजनीतिक समीकरण बन सकते हैं।

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