वकीलों को पेशेवर कानूनी सलाह देने के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा समन किए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई तय की है। सोमवार को इस संवेदनशील मुद्दे पर मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अनुपस्थिति में मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन. वी. अंजारिया की पीठ सुनवाई करेगी।
यह मामला तब उठा जब ईडी ने वरिष्ठ अधिवक्ताओं अरविंद दातार और प्रताप वेणुगोपाल को समन जारी किया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए इसे कानूनी पेशे की स्वतंत्रता पर हमला बताया और मुख्य न्यायाधीश से इस पर संज्ञान लेने की अपील की थी।
ईडी का स्पष्टीकरण और दिशा-निर्देश
बढ़ते विरोध के बीच ईडी ने 20 जून को अपने अधिकारियों को निर्देशित किया कि किसी भी वकील को सीधे समन न भेजा जाए, जब तक कि निदेशक स्तर से अनुमति प्राप्त न हो। साथ ही भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की धारा 132 के उल्लंघन से बचने के निर्देश भी दिए गए हैं।
पूर्व सुनवाई में उठे सवाल
25 जून को न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने टिप्पणी की थी कि वकील न्याय प्रशासन की प्रक्रिया का अभिन्न अंग हैं, और उन्हें सीधे समन करना कानूनी पेशे की स्वायत्तता को कमजोर कर सकता है।
पीठ ने दो प्रमुख सवाल भी उठाए थे:
1. यदि वकील केवल पेशेवर सलाह दे रहा हो, तो क्या उसे जांच एजेंसियां सीधे समन कर सकती हैं?
2. अगर एजेंसी के पास यह मानने का आधार हो कि वकील की भूमिका महज़ सलाह तक सीमित नहीं है, तो भी क्या समन भेजने से पहले न्यायिक निगरानी अनिवार्य होनी चाहिए?
क्यों है मामला संवेदनशील
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि जांच एजेंसियों को बिना रोक-टोक वकीलों को पूछताछ के लिए बुलाने की अनुमति मिलती है, तो यह न्यायिक स्वतंत्रता और पेशेवर गोपनीयता के मूल सिद्धांतों को प्रभावित कर सकता है। इसीलिए, सुप्रीम कोर्ट की यह सुनवाई कानूनी जगत के लिए बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है।