बिहार में चल रहे मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि वोटर लिस्ट संशोधन जारी रहेगा, क्योंकि संवैधानिक संस्था के कामकाज को रोका नहीं जा सकता।
हालांकि, जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने इस प्रक्रिया की टाइमिंग और प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए चुनाव आयोग से तीन मुख्य प्रश्नों का उत्तर मांगा है। अदालत ने कहा कि मामले की सुनवाई जरूरी है, और अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कोर्ट को बताया:
- वोटर लिस्ट संशोधन कानून में तय प्रक्रिया के तहत होना चाहिए।
- चुनाव आयोग ने एक नया शब्द “स्पेशल इंटेंसिव रिविजन” गढ़ लिया है, जो अधिसूचित प्रक्रिया से हटकर है।
- 2003 में यह प्रयोग हुआ था, लेकिन तब मतदाताओं की संख्या बहुत कम थी। आज बिहार में 7 करोड़ से अधिक वोटर हैं और इतनी बड़ी आबादी पर इतनी जल्दी यह प्रक्रिया करना संदेहास्पद है।
जस्टिस धूलिया ने कहा कि प्रथम दृष्टया अदालत के सामने तीन अहम प्रश्न हैं:
- भारत निर्वाचन आयोग की वोटर लिस्ट संशोधन संबंधी शक्तियां क्या हैं?
- इन शक्तियों को लागू करने की विधि और प्रक्रिया क्या होनी चाहिए?
- क्या इतनी सीमित समयसीमा (नवंबर तक) में यह प्रक्रिया तार्किक रूप से पूरी की जा सकती है, जबकि चुनाव अधिसूचना उससे पहले जारी हो सकती है?
- 21 जुलाई तक या उससे पहले चुनाव आयोग को प्रतिवाद (काउंटर एफिडेविट) दाखिल करने को कहा गया है।
- 28 जुलाई को इस मामले की विस्तृत सुनवाई की जाएगी।
- कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि फिलहाल वह प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं करेगा, लेकिन वैधानिक सवालों पर विचार जरूरी है।
बिहार में चुनाव आयोग ने पूरे राज्य में स्पेशल इंटेंसिव रिविजन की प्रक्रिया शुरू की है, जिसके तहत मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण किया जा रहा है। इस पर कुछ याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में सवाल उठाए हैं कि इस प्रक्रिया की वैधता, गति और पारदर्शिता पर गंभीर शंकाएं हैं।
चुनाव आयोग की ओर से कहा गया है कि यह एक राष्ट्रीय अभ्यास है और बिहार से इसकी शुरुआत की गई है।
यह मामला मतदाता सूची की पारदर्शिता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की विश्वसनीयता से जुड़ा हुआ है। आगामी सुनवाई में यह तय होगा कि चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली संविधान और कानून के अनुरूप है या नहीं।