पाकिस्तान ने बीते कुछ वर्षों में अपने रक्षा आयात में तेज़ी से बढ़ोतरी की है, लेकिन यह विस्तार पूर्ण रूप से चीन पर निर्भरता के साथ आया है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 से 2024 के बीच पाकिस्तान द्वारा किए गए कुल रक्षा आयात का 82% हिस्सा अकेले चीन से आया है। यह आंकड़ा दक्षिण एशिया में बदलते सामरिक समीकरणों और हथियारों की दौड़ को नया आयाम देता है।
चीन: सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता, पाकिस्तान: सबसे बड़ा ग्राहक
रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान ने इस अवधि में मुख्य रूप से JF-17 थंडर लड़ाकू विमान, एयर डिफेंस सिस्टम, ड्रोन और नौसैनिक जहाज चीन से खरीदे।
वर्तमान में पाकिस्तान, चीन के हथियारों का सबसे बड़ा ग्राहक बन चुका है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह संबंध केवल व्यापारिक नहीं, बल्कि रणनीतिक रूप से चीन के प्रभाव को स्थापित करने की दिशा में भी देखा जा रहा है।
अन्य आपूर्तिकर्ता देश: तुर्किये, इटली और रूस
हालांकि चीन के अलावा कुछ अन्य देश भी पाकिस्तान को रक्षा उपकरण बेच रहे हैं:
• तुर्किये: सैन्य हेलिकॉप्टर, ड्रोन तकनीक और नौसैनिक उपकरण। दोनों देशों के बीच हाल के वर्षों में सैन्य अभ्यास और रक्षा सौदे भी बढ़े हैं।
• इटली: फिनमेकेनिका और लियोनार्डो कंपनियों के माध्यम से पाकिस्तान को हेलिकॉप्टर, एवियोनिक्स और नेविगेशन सिस्टम की आपूर्ति।
• रूस: सीमित मात्रा में सैन्य तकनीकें और उपकरण, हालांकि यह सहयोग अन्य देशों की तुलना में बहुत सीमित है।
रणनीतिक चिंताएं और चीन की नीति
रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, चीन पाकिस्तान को आत्मनिर्भर नहीं बनने देना चाहता।
“चीन तकनीक हस्तांतरित तो करता है, लेकिन सीमित और नियंत्रित रूप में। उसका उद्देश्य है कि पाकिस्तान उसकी सामरिक छाया में बना रहे और हथियारों के बाजार में एक स्थायी ग्राहक बना रहे,” एक विश्लेषक ने बताया।
यह निर्भरता आने वाले वर्षों में पाकिस्तान की रक्षा स्वायत्तता और नीति-निर्माण की स्वतंत्रता पर गंभीर प्रश्न खड़े कर सकती है।
भारत का रुख: संतुलन और स्वदेशीकरण
रिपोर्ट यह भी रेखांकित करती है कि भारत ने हथियारों की खरीद को लेकर बहु-ध्रुवीय नीति अपनाई है।
• रूस, अमेरिका, फ्रांस, इज़राइल समेत कई देशों से रक्षा सहयोग
• आत्मनिर्भर भारत के तहत स्वदेशी रक्षा उत्पादन को बढ़ावा
SIPRI की यह रिपोर्ट स्पष्ट रूप से दिखाती है कि पाकिस्तान का रक्षा क्षेत्र भविष्य के लिए चीन पर रणनीतिक रूप से निर्भर होता जा रहा है, जबकि भारत विविध साझेदारियों और आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर है। आने वाले समय में यह अंतर दोनों देशों की सुरक्षा नीति, रणनीतिक स्वतंत्रता और वैश्विक कूटनीति में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।