भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ का रिटायरमेंट के बाद भी आधिकारिक बंगले में बने रहना अब विवाद का कारण बन गया है। सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि 5, कृष्णा मेनन मार्ग स्थित मुख्य न्यायाधीश का आधिकारिक आवास तत्काल खाली कराया जाए।
आठ महीने से टाइप-8 बंगले में रह रहे हैं चंद्रचूड़
पूर्व सीजेआई नवंबर 2024 में सेवानिवृत्त हुए थे। नियमानुसार, किसी भी सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश को 6 महीने तक टाइप-7 बंगले में रहने की अनुमति होती है। लेकिन चंद्रचूड़ अब 8 महीने से टाइप-8 बंगले में रह रहे हैं, जो नियमों का उल्लंघन माना जा रहा है।
CJI गवई और जस्टिस खन्ना ने बंगला लेने से किया इनकार
चंद्रचूड़ के रिटायरमेंट के बाद दो नए मुख्य न्यायाधीश — जस्टिस संजीव खन्ना और वर्तमान सीजेआई बीआर गवई ने इस बंगले में शिफ्ट होने से इनकार कर दिया और अपने पुराने आवास में ही रहना पसंद किया। इसी कारण चंद्रचूड़ को बंगले में अतिरिक्त समय तक रहने की अनुमति मिल सकी।
सुप्रीम कोर्ट ने चेताया – अब और इंतज़ार नहीं
सूत्रों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही उन्हें अप्रैल 2025 तक रहने की अनुमति दी थी, जो बाद में मौखिक रूप से मई तक बढ़ा दी गई। अब यह समय भी समाप्त हो चुका है और कोर्ट प्रशासन ने कहा है कि अब अन्य जजों को भी आवास की ज़रूरत है, इसलिए और देरी संभव नहीं।
चंद्रचूड़ ने पारिवारिक कारणों का दिया हवाला
इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह देरी पारिवारिक परिस्थितियों के कारण हुई है।
“मेरी दो बेटियों को विशेष देखभाल की ज़रूरत है। उनके लिए उपयुक्त घर ढूंढना आसान नहीं था,” उन्होंने कहा।
उन्होंने बताया कि सरकार ने उन्हें किराए पर एक वैकल्पिक घर दिया है, जिसकी मरम्मत चल रही है। जैसे ही मरम्मत पूरी होगी, वह स्थानांतरित हो जाएंगे।
“जिम्मेदारियों का पूरी तरह से एहसास है” – चंद्रचूड़
चंद्रचूड़ ने कहा कि उन्हें पूरी तरह से अपनी संवैधानिक और नैतिक जिम्मेदारियों का एहसास है और वह कुछ ही दिनों में बंगला छोड़ देंगे। उन्होंने यह भी जोड़ा कि अतीत में भी कई पूर्व मुख्य न्यायाधीशों को परिस्थितियों को देखते हुए अतिरिक्त समय दिया गया था। यह मुद्दा वे पहले ही सुप्रीम कोर्ट प्रशासन के साथ साझा कर चुके हैं।
देश के सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व प्रधान न्यायाधीश से जुड़ा यह मामला प्रशासनिक और नैतिक दृष्टिकोण से संवेदनशील बन गया है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से स्पष्ट निर्देश के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि चंद्रचूड़ कितनी जल्दी इस मुद्दे का समाधान करते हैं।