दुनियाभर में पशुपालन व खेती की उत्पादकता बढ़ाने के लिए इस्तेमाल की जा रही एंटीबायोटिक दवाएं इंसानी सेहत के लिए बहुत बड़ा खतरा है। ये दवाएं प्रतिरोधी बैक्टीरिया को जन्म दे रही हैं, जो इंसानी प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए गंभीर चुनौती बन रहे हैं। ऑक्सफोर्ड वििव के वैज्ञानिकों के अध्ययन में सामने आया है कि कृषि क्षेत्र में एंटीबायोटिक दवाओं, विशेषकर कोलिस्टिन जैसे एंटीमाइक्रोबियल पेप्टाइड्स का अत्यधिक उपयोग, प्रतिरोधी बैक्टीरिया के विकास में सहायक बन रहा है। ये बैक्टीरिया इतने ताकतवर हो चुके हैं कि अब मानव शरीर की प्राकृतिक प्रतिरक्षा प्रणाली भी इन्हें रोकने में विफल साबित हो रही है। चीन में कोलिस्टिन का लंबे समय तक इस्तेमाल पालतू सूअरों और मुर्गियों को जल्दी मोटा तगड़ा करने के लिए किया गया। इससे ई. कोलाई जैसे खतरनाक बैक्टीरिया के ऐसे स्ट्रेन विकसित हुए जो इंसानी इम्यून सिस्टम को चकमा देने में सक्षम हैं। भले ही चीन ने इस एंटीबायोटिक पर प्रतिबंध लगा दिया हो, लेकिन इसके प्रभाव अब भी महसूस किए जा रहे हैं। इसकी गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दुनिया भर में बेची जाने वाले 73 फीसदी एंटीबायोटिक्स का उपयोग उन जानवरों पर किया जाता है, जिन्हें भोजन के लिए पाला गया है। एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स (एएमआर) अब वैश्विक जनस्वास्थ्य संकट बन चुका है। जर्नल लैंसेट की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में एएमआर के चलते 12.7 लाख लोगों की जान गई, जो मलेरिया और एचआईवी (एड्स) से भी अधिक थी। यदि यही रफ्तार बनी रही तो 2050 तक ‘सुपरबग्स’ हर साल एक करोड़ लोगों की जान ले सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय जर्नल साइंस में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, भारत व चीन जैसे देशों में खेतों और जानवरों पर अत्यधिक एंटीबायोटिक उपयोग के कारण एएमआर का खतरा तीन गुना तक बढ़ चुका है। कई खतरनाक एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल पौधों में किया जाता है, जैसे स्ट्रेप्टोमाइसिन, ऑक्सीटेट्रासाइक्लिन, कासुगामाइसिन, ऑक्सोलिनिक एसिड और जेंटामाइसिन। स्ट्रेप्टोमाइसिन भारत समेत दुनियाभर में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला एंटीबायोटिक है और इसका उपयोग पौधों में बैक्टीरिया के संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। इसी प्रकार ऑक्सीटेट्रासाइक्लिन का प्रयोग जलीय कृषि में किया जाता है, लेकिन यह भी बैक्टीरिया के प्रतिरोधी होने का कारण बनता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक भारत में पोल्ट्री इंडस्ट्री हर साल 10% की दर से बढ़ रही है। भारत में मांस का जितना सेवन किया जाता है, उसका 50% हिस्सा मुर्गियों से प्राप्त होता है।