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हिमालयी क्षेत्रों में एक अक्तूबर से शुरू होगी जातीय जनगणना, दो चरणों में होगा कार्य

उत्तराखंड समेत हिमालयी बर्फबारी वाले क्षेत्रों में आगामी जाति...

आरटीओ ऑफिस के पास ददर्नाक हादसा

तड़के बुधवार ऋषिकेश स्थित आरटीओ ऑफिस के पास एक...

देवभूमि

कुमाऊं : कैसे हुआ नामकरण

इस प्रान्त का नाम कुर्मांचल या कुमाऊं होने के...

रामगंगा नदी घाटी में दबा है ऐतिहासिक शहर! फिर दुनिया के सामने लाने को ASI ने कसी कमर

अल्मोड़ा. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने उत्तराखंड के अल्मोड़ा...

नंदा देवी जात यात्रा – देवभूमि की अमृत धारा

नंदा देवी जात यात्रा – देवभूमि की अमृत धारा यात्रा...

व्यक्तितव

वीर सिपाही शहीद केसरी चंद

उत्तराखंड देव भूमि के साथ वीरों की भी भूमि...

डॉ. यशवंत सिंह कठोच

डॉ. यशवंत सिंह कठोच का नाम वैसे तो उत्तराखंड...

सुमित्रानंदन पंत

अमिताभ बच्चन को उनका नाम दिया था कवि सुमित्रानंदन...

Bachendri Pal

Bachendri Pal, (born May 24, 1954, Nakuri, India), Indian...

The World of Raghu Rai: His Photography & Life

It was a picture of a donkey that started...

ताना-बाना

उत्तराखंड में हुए एक सीक्रेट मिशन का खतरा आज भी बरकरार

बात 1965 की है,  जब वियतनाम युद्ध तेज हो रहा...

पनीर ने रोका पलायन : रौतू कीबेली गाँव

उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में बसे गाँवों में रोज़गार...

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Wednesday, July 30, 2025

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आबादी खिसकने से और खिसक जाएगी पहाड़ की सियासी जमीन

देहरादून परिसीमन को लेकर दक्षिण भारत के पांच राज्यों के मुख्यमंत्रियों की गोलबंदी के बाद उत्तराखंड में भी इस मुद्दे पर सुगबुगाहट है। हालांकि अभी परिसीमन आयोग का गठन नहीं हुआ है और पहले जनगणना होनी है। इसलिए इसमें अभी काफी वक्त है। लेकिन दक्षिण भारत से इतर हिमालयी राज्य उत्तराखंड की अपनी चिंताएं हैं। पहाड़ी राज्य की अवधारणा पर बने उत्तराखंड के नौ पर्वतीय जिलों से आबादी जिस तेजी से खिसक रही है उतनी ही तेजी से राज्य के चार मैदानी जिलों में आबादी बढ़ रही है। चुनाव आयोग की मतदाता सूचियां इन तथ्यों की तस्दीक करती हैं। पहाड़ की तुलना में मैदानी जिलों में मतदाताओं की संख्या बहुत अधिक तेजी से बढ़ी है।

यही पर्वतीय राज्य के सरोकारों से जुड़े राजनीतिज्ञों की चिंता की प्रमुख वजह है। 2018 में पलायन आयोग ने रिपोर्ट दी थी कि उत्तराखंड से पांच लाख से अधिक लोगों ने पलायन किया। इनमें तीन लाख से अधिक लोग काम की तलाश या बुनियादी सुविधाओं के अभाव में अस्थायी रूप से घर-बार छोड़ गए। तब से प्रदेश सरकार पलायन रोकने और रिवर्स पलायन के लिए उपाय कर रही है। गढ़वाल सांसद अनिल बलूनी मेरा वोट-मेरा गांव अभियान के जरिये अस्थायी रूप से पलायन कर चुके लोगों को अपने गांवों में वोट बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। बकौल बलूनी, उनके गांव में अभियान प्रभावी रहा है। मगर जानकारों के हिसाब से ये सारे उपाय उतने प्रभावी नहीं हैं कि पहाड़ और मैदान के बीच जनसंख्या के अंतर को पाट सकें।

चारधाम ऑलवेदर रोड, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना, हवाई कनेक्टिविटी के विस्तार से पर्वतीय क्षेत्रों में आर्थिक सुधार की उम्मीद की जा रही है। माना जा रहा है कि रेल, हवाई और रोड कनेक्टिविटी के विस्तार से पहाड़ में विकास गति पकड़ेगा और लोगों के आजीविका के साधन जुटेंगे। सोलर, होम स्टे और उद्यानिकी से जुड़ी योजनाओं के जरिये भी रिवर्स पलायन की कोशिशों में जुटी है।

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