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प्रदेश के 10 जिलों में भाजपा ने जिला पंचायत...

राज्यपाल बोले – मानसून में आगे भी आ सकती हैं चुनौतियां, एजेंसियां रहें 24 घंटे अलर्ट

राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि) ने गुरुवार को...

दून समेत पांच जिलों में भारी बारिश के आसार, बाढ़ का खतरा

उत्तराखंड में मौसम का मिज़ाज आज भी बिगड़ा रहेगा।...

शिक्षकों को बड़ी राहत, वसूली की रकम लौटाएगी सरकार

चयन और प्रोन्नत वेतनमान के समय दी गई अतिरिक्त...

भराड़ीसैंण में 19 अगस्त से मानसून सत्र, आपदा व पुनर्वास होंगे मुख्य मुद्दे

ग्रीष्मकालीन राजधानी भराड़ीसैंण में 19 से 22 अगस्त तक...

देवभूमि

कुमाऊं : कैसे हुआ नामकरण

इस प्रान्त का नाम कुर्मांचल या कुमाऊं होने के...

रामगंगा नदी घाटी में दबा है ऐतिहासिक शहर! फिर दुनिया के सामने लाने को ASI ने कसी कमर

अल्मोड़ा. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने उत्तराखंड के अल्मोड़ा...

नंदा देवी जात यात्रा – देवभूमि की अमृत धारा

नंदा देवी जात यात्रा – देवभूमि की अमृत धारा यात्रा...

व्यक्तितव

वीर सिपाही शहीद केसरी चंद

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डॉ. यशवंत सिंह कठोच

डॉ. यशवंत सिंह कठोच का नाम वैसे तो उत्तराखंड...

सुमित्रानंदन पंत

अमिताभ बच्चन को उनका नाम दिया था कवि सुमित्रानंदन...

Bachendri Pal

Bachendri Pal, (born May 24, 1954, Nakuri, India), Indian...

The World of Raghu Rai: His Photography & Life

It was a picture of a donkey that started...

ताना-बाना

उत्तराखंड में हुए एक सीक्रेट मिशन का खतरा आज भी बरकरार

बात 1965 की है,  जब वियतनाम युद्ध तेज हो रहा...

पनीर ने रोका पलायन : रौतू कीबेली गाँव

उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में बसे गाँवों में रोज़गार...

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Saturday, August 16, 2025

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मोबाइल-लैपटॉप से चिपकी रहने वाली किशोरियों में अनिद्रा और डिप्रेशन का खतरा

मोबाइल, टैबलेट और कंप्यूटर स्क्रीन पर बहुत ज्यादा वक्त बिताना किशोरों, खासकर लड़कियों के लिए नुकसादायक साबित हो सकता है, क्योंकि यह उनकी नींद में खलल डालता है, और उनमें डिप्रेशन का खतरा बढ़ाता है। यह खुलासा स्वीडन के कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं के प्लॉस ग्लोबल पब्लिक हेल्थ पत्रिका में प्रकाशित नए अध्ययन में हुआ है। पहले भी कई शोधों में देखा गया है कि स्क्रीन पर ज्यादा वक्त बिताना नींद और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं, जैसे चिंता और डिप्रेशन से जुड़ा हुआ है। लेकिन अब तक ये साफ नहीं था कि नींद की दिक्कत डिप्रेशन लाती है, या डिप्रेशन नींद में खलल डालता है। इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए स्वीडन के करोलिंस्का इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने 12 से 16 साल के 4,810 छात्रों पर एक साल तक अध्ययन किया। उन्होंने छात्रों के स्क्रीन टाइम, नींद की गुणवत्ता और डिप्रेशन के लक्षणों का आकलन किया। शोध में देखा गया कि स्क्रीन पर अधिक वक्त बिताने से तीन महीनों के अंदर ही इन छात्रों की नींद में खलल पड़ने लगा था। इससे उनकी नींद का वक्त भी घटा और उसकी गुणवत्ता भी गिरी। बहुत से किशोर देर रात सोने लगे। शोधकर्ताओं ने बताया कि स्क्रीन टाइम से नींद की कई परतों पर एक साथ असर होता है। इसका असर लड़कियों में डिप्रेशन के रूप में दिखा, जबकि लड़के नींद की कमी के कारण बाहरी तौर पर अधिक आक्रामक हो गए थे। उनके व्यवहार में चिड़चिड़ापन या गुस्सा साफ दिखा। स्वीडन की सार्वजनिक स्वास्थ्य एजेंसी ने सितंबर 2024 में सलाह दी थी कि किशोरों को अपनी नींद में सुधार लाने के लिए फुर्सत के वक्त में रोजाना 2 से 3 घंटे से अधिक स्क्रीन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। शोधकर्ताओं का मानना है कि ऐसे दिशा-निर्देशों से किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर पड़ सकता है।

शोध में स्क्रीन टाइम का असर लड़कों और लड़कियों पर अलग-अलग होता है। लड़कों में स्क्रीन टाइम सीधे-सीधे डिप्रेशन का कारण बना। जबकि लड़कियों में स्क्रीन टाइम से पहले नींद में खलल पड़ने की परेशानी पेश आई और फिर उसी के चलते डिप्रेशन के लक्षण आए। शोधकर्ताओं ने देखा कि लड़कियों में स्क्रीन टाइम अधिक होने से 38 से 57 फीसदी मामलों में पहले नींद में खलल पड़ा और उसके बाद डिप्रेशन हुआ, जबकि स्क्रीन टाइम अधिक होने से लड़कों की नींद में खलल तो पड़ा, लेकिन उनमें नींद कम लेना डिप्रेशन की कम ही वजह बनी थी।

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