Tuesday, July 1, 2025

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जलवायु परिवर्तन से घट जाएगा केले का 60% उत्पादन

जलवायु परिवर्तन का असर अब केले के उत्पादन पर भी पड़ रहा है। बढ़ते तापमान के कारण वर्ष 2080 तक केले के बागान तबाह हो सकते हैं। इसकी वजह से लैटिन अमेरिका और कैरिबियन के कई इलाकों में निर्यात के लिए केले की खेती जारी रखना आर्थिक रूप से घाटे का सौदा हो जाएगा। भारत और चीन पर भी इसका असर पड़ेगा। अध्ययन एक्सेटर विश्वविद्यालय, इंग्लैंड के शोधकर्ताओं की अगुवाई में किया गया है। इसके नतीजे नेचर फूड पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं। केला एक प्रमुख निर्यात की जाने वाली फसल है, जिसकी सालाना कीमत 11 अरब डॉलर है और यह कई देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लिए महत्वपूर्ण है। फिर भी जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए तत्काल हस्तक्षेप न किए जाने पर आधी सदी में वर्तमान में केले का उत्पादन करने वाले 60 फीसदी क्षेत्रों में केले की फसल उगाने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा। साथ ही अध्ययन में यह भी पाया गया कि श्रम उपलब्धता और बुनियादी ढांचे जैसे सामाजिक-आर्थिक कारण जलवायु परिवर्तन अनुकूलन में भारी गड़बड़ी पैदा करते हैं। अधिकांश केले का उत्पादन घनी आबादी वाले क्षेत्रों और बंदरगाहों के पास होता है, जिससे अधिक उपयुक्त क्षेत्रों में बदलने की संभावना सीमित हो जाती है। कम सिंचाई और गर्मी सहन करने वाली केले की किस्मों सहित अनुकूलन में पर्याप्त निवेश के बिना निर्यात किए जाने वाले केले के उत्पादन का भविष्य अनिश्चित दिखता है।

भारत में 88 हजार हेक्टेयर में 297 लाख टन केले का उत्पादन होता है। केले का उत्पादन देश के लगभग सभी राज्यों में किया जाता है, लेकिन  नेशनल हॉर्टिकल्चर बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और बिहार सात ऐसे राज्य हैं जो देश का 75% केला उत्पादित करते हैं।

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