भारत में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से निकलने वाला प्रदूषण किसानों के लिए महंगा साबित हो रहा है। इन संयंत्रों से उत्सर्जित नाइट्रोजन ऑक्साइड देश के कई हिस्सों में गेहूं और धान की पैदावार को हर साल 10 फीसदी या उससे अधिक तक कम कर रहा है। स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के डोएर स्कूल ऑफ सस्टेनेबिलिटी के वैज्ञानिकों के शोध में यह सामने आया है, जिसके निष्कर्ष प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (पनास) पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं। शोधकर्ताओं ने एक विशेष मॉडल का उपयोग करके यह अध्ययन किया कि कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से होने वाला प्रदूषण फसलों को किस तरह प्रभावित करता है। इसके लिए उन्होंने वायु प्रवाह के पैटर्न, 144 बिजली संयंत्रों की गतिविधियों और उपग्रह से मिले आंकड़ों का विश्लेषण किया। इससे पता चला कि यदि इन संयंत्रों से निकलने वाले नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन पर नियंत्रण किया जाए तो गेहूं और धान की पैदावार में सुधार हो सकता है, जिससे किसानों को सालाना 82 करोड़ डॉलर तक का आर्थिक लाभ हो सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह बिजली संयंत्र 100 किलोमीटर के दायरे में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के स्तर को बढ़ा रहे हैं जिससे आसपास की फसलें प्रभावित हो रही हैं। यदि मुख्य फसल सीजन (जनवरी-फरवरी और सितंबर-अक्टूबर) के दौरान इस प्रदूषण पर नियंत्रण किया जाए तो भारत में धान की पैदावार को सालाना 42 करोड़ डॉलर और गेहूं की पैदावार को 40 करोड़ डॉलर तक का फायदा हो सकता है।
शोधकर्ताओं के अनुसार छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में, जहां बिजली उत्पादन में कोयले की बड़ी हिस्सेदारी है, वहां नाइट्रोजन डाइऑक्साइड प्रदूषण में कोयले का योगदान 13 से 19 फीसदी तक है। वहीं, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में यह योगदान 3 से 5 फीसदी के बीच है। इसके अलावा वाहनों और औद्योगिक इकाइयों से होने वाला जीवाश्म ईंधन का दहन भी नाइट्रोजन डाइऑक्साइड प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत है। कोयला बिजली संयंत्रों के कारण फसल उत्पादन को होने वाला नुकसान इन संयंत्रों से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं के कारण होने वाली मौतों की तुलना में कम आंका जाता है। हालांकि प्रति यूनिट बिजली उत्पादन के हिसाब से देखें तो फसलों को होने वाला नुकसान कहीं अधिक हो सकता है। अध्ययन किए गए 144 संयंत्रों में से 58 में धान की क्षति, प्रदूषण से होने वाली मौतों की तुलना में अधिक पाई गई। इसी तरह 35 संयंत्रों में गेहूं की फसल को हुआ नुकसान मौतों से अधिक था।