Monday, February 3, 2025

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अब तक सिर्फ सात देशों ने साझा किए जलवायु लक्ष्य

जलवायु परिवर्तन की गहन चर्चाओं के बीच 2035 के लिए अब तक केवल सात देशों ने ही अपनी जलवायु योजनाएं साझा की हैं, जबकि इसकी समय-सीमा 10 फरवरी 2025 है। इससे पता चलता है कि दुनिया जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए ठोस कदम नहीं उठा रही है। ब्राजील इस वर्ष के अंत में कॉप30 की मेजबानी करेगा।इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर एनवायरनमेंट एंड डेवलपमेंट (आईआईईडी) का कहना है कि यह स्थिति जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए राजनीतिक नेतृत्व की इच्छाशक्ति की कमी को भी दर्शाती है। पेरिस समझौते में शामिल देशों को हर पांच साल में जलवायु परिवर्तन से संबंधित अपनी अपडेटेड योजनाएं प्रस्तुत करनी होती हैं, जिन्हें राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) कहा जाता है। ये लक्ष्य इस बात को आधार प्रदान करते हैं कि प्रत्येक देश पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए क्या कार्रवाई करेंगे। आईआईईडी के अनुसार अब तक जिन सात देशों ने अपने अपडेट एनडीसी प्रस्तुत किए हैं उनमें ब्राजील, उरुग्वे, संयुक्त अरब अमीरात, स्विटजरलैंड, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका शामिल हैं। डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका पहले ही पेरिस समझौते से पीछे हटने की अपनी मंशा की घोषणा कर चुका है। हालांकि इसके पहले वह अपडेट एनटीसी प्रस्तुत कर चुका था।पेरिस समझौता एक अंतरराष्ट्रीय संधि है जिसका लक्ष्य वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि को पूर्व औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के प्रयास करना है। यह समझौता विकसित देशों को विकासशील देशों को उनके जलवायु शमन और अनुकूलन प्रयासों में सहायता करने का मार्ग प्रदान करता है, साथ ही देशों के जलवायु लक्ष्यों की पारदर्शी निगरानी और रिपोर्टिंग के लिए एक रूपरेखा तैयार करता है।

आईआईईडी में जलवायु विशेषज्ञ कैमिला मोर का कहना है कि दुनिया तेजी से गर्म हो रही है, ऐसे में जल्द से जल्द साहसिक कदम उठाने की जरूरत है। लेकिन यह निराशाजनक है कि अब तक केवल तीन फीसदी देशों ने अपनी नई अपडेट जलवायु योजनाओं को साझा किया है। दुनिया अब और इन्तजार नहीं कर सकती, क्योंकि पहले ही काफी देर हो चुकी है। जलवायु में आ रहे बदलावों को देखते हुए यह लक्ष्य बेहद महत्वपूर्ण हैं। कुछ राजनेता चाहे कुछ भी कहें, लेकिन इससे यह सच्चाई नहीं बदल सकती कि जलवायु संकट पहले ही दुनिया में आर्थिक तबाही मचा रहा है और ऐसे में हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने की कीमत दुनिया को चुकानी पड़ेगी।

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